शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

कहां ले जाएगी ये उत्तेजना

ज़रा ठहरिए और सोचिए 


शिव तीसरा नेत्र खोलते हैं तो प्रलय आता है. 

शिव की दो आंखें दुनिया के कल्याण के लिए हैं. तीसरी विनाश के लिए. 

महादेव के तीसरी आंख खोलने की कथाएं कम ही हैं. 

तीसरी आंख प्रतीक ज्यादा है. कामदेव को भस्म करने के लिए खुलती है और फिर बंद हो जाती है. 

शिव के क्रोध का ज्वालामुखी युगों में एक बार फूटता है. वो भी दुनिया के कल्याण के लिए. 

लेकिन, शिव भक्तों का हाल देखिए. गुस्सा जाहिर करने के लिए तीसरी आंख की जरुरत ही नहीं. दोनों आंखों में ही अंगार लिए घूमते हैं. 

गुस्से का एक नमूना देखिए. 

उज्जैन के महाकाल मंदिर में एक डिप्टी कलेक्टर और एक कॉन्सटेबल के बीच महाभारत हो गया. 

बात छोटी सी थी. डिप्टी कलेक्टर वीवीआईपी ट्रीटमेंट चाहते थे. गेट पर खड़ा कॉन्सेटेबल उन्हें पहचान नहीं पाया. परिचय पूछ लिया. 

डिप्टी कलेक्टर साहब नाराज़ हो गए. आकार में अपने से डेढ़ गुने कॉन्सटेबल को थप्पड़ जड़ दिया. 

पद की गर्मी में शायद सोचा हो कॉन्सेटबल सह जाएगा.

लेकिन, आकलन गलत हो गया. कॉन्सटेबल के पास भी वर्दी की गर्मी थी. 

कुछ वर्दी का गुरुर और कुछ थप्पड़ खाने की खीज. सिपाही हत्थे से उखड़ गया. डिप्टी कलेक्टर साहब को मारने दौड़ा. 

खुलकर एलान किया, 'हल चलाकर खा लूंगा, मार नहीं खाऊंगा'. 

यानी नौकरी मेरे ठेंगे पे. 'थप्पड़ का बदला तो लेके रहूंगा डिप्टी कलक्टर' 

दस-दस लोगों ने पकड़ा तब सिपाही काबू हो सका. 

मंदिर में तमाशा खड़ा हो गया. डिप्टी कलेक्टर और सिपाही की तकरार का वीडियो नेशनल मीडिया में छा गया. 

प्रशासनिक खामियों के लिए लगातार सुर्खियां बटोर रहे मध्य प्रदेश के नाम पर एक और दाग लग गया. 

गुस्से का ऐसा गुबार सिर्फ उज्जैन में नहीं फूटा है. 

आप कहीं चले जाइये, आपको हर तरफ लोग गुस्से में तपते नज़र आएंगे. 

इस गुस्से की वजह से सड़क पर मारपीट के किस्से आम हो चले हैं. ऐसी लड़ाइयों में जान जाने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. 

दिल्ली में सड़क पर मामूली टक्कर की दो अलग-अलग घटनाओं में एक बाइक सवार और एक बस ड्राइवर की मौत का मामला अभी ताज़ा है. 

एक ऐसा समाज जिसकी सहनशीलता, दूसरों की गलतियों को क्षमा करने की खूबी और किसी सूरत में किसी कमजोर पर हिंसा न करने की प्रतिज्ञा पूरी दुनिया में मशहूर थी, वो आज बात-बात में उबल और उफन रहा है. 

उसके लिए गुस्सा और अपना गुरुर इतना अहम है कि दूसरों के स्वाभिमान को तो छोड़िए जान की भी कोई कीमत नहीं रही. 

किसी वक्त सहनशीलता शक्ति का परिचायक मानी जाती थी. आज सहन न करने को ताकत बताने का जरिया मान लिया गया है. 

बीते चार साल से तो मैं देख रहा हूं कि एक समाज के तौर पर हम लगातार उत्तेजना के चरम पर बने हुए हैं. 

इसकी शुरुआत अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुई. 

अन्ना अनशन पर बैठे और भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरा देश उबल पड़ा. 

फिर दिल्ली की सड़क पर एक असहाय के साथ चलती बस में हैवानियत की घटना हुई.

इस बार भी दिल्ली समेत पूरा देश उबल पड़ा. 

इसके बाद तो उत्तेजना, गुस्सा और उन्माद समाज का स्थायी भाव सा हो गया. 

समाज की अगुवाई करने वालों ने बदलाव की दुहाई देते हुए इस भाव को बदलने नहीं दिया. लोकसभा चुनाव खत्म हुए तो लगा कि चलो, लावा बह गया अब मन का ज्वालामुखी शांत हो जाएगा. 

लेकिन, नहीं. उन्माद, उत्तेजना और गुस्से की भट्टी में ईधन डालने वाले अब भी थके नहीं है. 

मैं फिक्रमंद हूं. ये स्थिति एक समाज के तौर पर हमारी पहचान के उलट है. 

हमारी पहचान तो विरोधी को भी सम्मान देने की रही है. हम वो समाज हैं, जिसने कभी गुरुर के लिए गुस्सा नहीं किया. 

हम जिन सर्वशक्तिमान भगवान को पूजते हैं, उनकी छवि को याद करें तो उनका सुदर्शन नहीं, बांसुरी ही हमें याद आती है. 

किसी शिशुपाल की गलतियां सौ की गिनती पार कर जाती हैं तो चक्र हाथ में आता जरुर है, लेकिन स्थाई तौर पर नहीं रहता. 

हमारे गुरु जब ज्ञान देते हैं तो कहते हैं, 'जिसने आपको क्रोधित कर दिया, उसने आपको पराजित कर दिया'. 

तो फिर हम पराजय को स्थाई भाव में बदलने को बेताब क्यों हैं? 

हम इस गुस्से की आग में किसे जलाना चाहते हैं ? अपने विरोधी को . अपनी क्षमाशीलता को या फिर एक समाज के तौर पर अपनी पहचान को?

सजा देने वाले से बड़ा माफ करने वाला होता है. अगर आप वास्तविकता में शक्तिशाली हैं तो माफ करने से आपकी ताकत और रुतबे में इजाफा ही होता है.गुजारिश है, माफ करने की खूबी को भुलाइये मत. 

अगर आप ये कर सके तो जब कभी आपको क्रोध आएगा तो वो शिव का क्रोध होगा. प्रलयंकारी. 

रोज़ उबलेंगे तो आपका गुस्सा आपका ही दुश्मन हो जाएगा.   

3 टिप्‍पणियां:

  1. Bitterness is like cancer. It eats upon the host. But anger is like fire. It burns it all clean. Nice very much needed blog for this topic..

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  2. Bitterness is like cancer. It eats upon the host. But anger is like fire. It burns it all clean. Nice very much needed blog for this topic..

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  3. गुस्सा बुद्धि और विवेक दोनों को खा जाता है। लेकिन, ईमानदारी से ड्यूटी कर रहे कांस्टेबल को पीटने वाले डिप्टी कलक्टर से कौन निपटेगा, रसूखदारों के तलवे चाट रहा सिस्टम? अरे भाई तुम डिप्टी कलेक्टर थे परिचय देते तो इज़्ज़त बढ़ जाती ना कि घाट जाती।

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