मंगलवार, 18 अगस्त 2015

नंबर का खेल समझिए साहेब

दुनिया फंसेगी आंकड़ों का जाल तो बिछाइये 


आज बात एक सवाल से शुरु करते हैं. 

क्या आपको आंकड़ों से खेलना आता है ? अगर नहीं तो जल्दी सीख लीजिए. 

21 वीं सदी में कामयाबी के तिलिस्म का ताला आंकड़ों की चाबी से ही खुलता है. 

लेकिन, आपको ध्यान रखना होगा कि आपके पास सही चाबी है. 

नहीं तो ज़िंदगी ताले खोलने की कोशिश में ही गुजर जाएगी.  

जो आंकड़ों को महज भरम मानते हैं, उनसे मैं कहूंगा अपनी सोच को थोड़ा सा 'मॉडिफाई' कर लें. 

आंकड़े भरम नहीं इंद्रजाल सरीखे होते हैं, जो पूरे जमाने को भरमा देते हैं. या कहें कि दीवाना बना देते हैं. 

चलिए मैं एक और सवाल पूछता हूं. 

नितिन फायर प्रोटेक्शन इंडस्ट्रीज का नाम सुना था? मैंने कल तक नहीं सुना था. सुनने की वजह बना एक दिलचस्प आंकड़ा. 

कंपनी के शेयरों में अमिताभ बच्चन ने निवेश किया और उनमें दस फ़ीसदी का उछाल आ गया. 

अगर शेयर इतनी तेज़ी से छलांग न लगाते तो अमिताभ का निवेश भी ख़बर नहीं बनता. 

बात अमिताभ की निकली है तो बॉलीवुड का हाल भी देखते चलें. 

एक दौर वो था, जब किसी आने वाली फिल्म की कहानी, संगीत और दूसरे आर्टिस्टिक पहलू पर बात होती थी लेकिन अब सवाल सिर्फ एक होता है. क्या ये फिल्म 100 करोड़ के क्लब में शामिल होगी?

क्रिकेट तो खैर आंकड़ों की पिच पर ही खेला जाता है. 

ये आंकड़े ही खेल की दिलचस्पी बढ़ाते हैं और फैन्स को मैदान और टीवी के सामने तक खींच कर लाते हैं. 

अब मैच की कामयाबी टीआरपी यानी उस आंकड़े से तय होती है कि टीवी पर उसे कितने लोगों ने देखा. 

भारत और श्रीलंका की बोरिंग समझी जा रही टेस्ट सीरीज में भी आंकड़ों ने ही दिलचस्पी जगाई. 

सीरीज़ शुरु होने के पहले बताया गया कि भारत ने 22 साल से श्रीलंका में टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती है और विराट कोहली की जोशीली युवा टीम ऐसा कर सकती है. 

ये बात अलग है कि गॉल में खेले गए पहले टेस्ट मैच में इस टीम ने कुल्हाड़ी पर पैर मार लिया. 

और तो और, आंकड़े न हों तो घोटालों की 'गरिमा' भी समझ में नहीं आती. 

मसलन दो हज़ार करोड़ का घोटाला. सुनते ही लगता है, हैरान होकर पूछें, 'भैये बताओ क्या लूट मचाई है'? किसी चौपाल पर कोई पूछ भी सकता है, 'बताओ तो जी, कित्ते ज़ीरो लगिंगे दो हज़ार करोड़ में?'

इन आंकड़ों के दम पर ही पूर्व सीएजी विनोद राय का नाम बच्चे-बच्चे को याद हो गया. अब उस कुर्सी पर शर्मा जी बैठे हैं, लेकिन किसे पता? 

आंकड़ों का ये खेल इमेज बिल्डिंग में खासा मददगार साबित हो सकता है. 

क्या आपको पता है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कितने घंटे सोते थे और कितने घंटे काम करते थे?

मुझे नहीं पता. लेकिन मोदी जी के बारे में पता है. वो बीस घंटे काम करते हैं और चार घंटे सोते हैं. 

मुझे ये भी पता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने 15 मिनट की भी छुट्टी नहीं ली. 

और, अब थोड़ी देर पहले ये भी पता चला है कि वो यूएई से एक भारी-भरकम आंकड़ा लेकर लौट रहे हैं 

मोदी जी लेकर क्या गए थे, पता नहीं लेकिन साढ़े चार लाख करोड़ के निवेश का भरोसा लेकर आ रहे हैं. 

ये आंकड़ा इतना बड़ा है कि अगर आप ज़ीरो लगाने या गिनने को कह दें तो मुझे चक्कर आ सकते हैं. 

और अब आज के लिए मेरा आखिर सवाल कि इस रकम का होगा क्या?  

क्या इससे आपकी ज़िंदगी में बदलाव आएगा? जरुर आ सकता है, बशर्ते आप आंकड़ों से खेलना सीख पाएं

और, चलते-चलते आंकड़ों से जुड़ा एक किस्सा. 

कुछ दिन पहले बिहार के एक सांसद से मुलाकात हुई. बड़े दिलचस्प और ईमानदार सांसद हैं. बातें भी ईमानदारी से करते हैं. बात रेलवे की हो रही थी. 

उन्होंने कहा, 'हम तो अपनी जानते हैं. पहले हमारे यहां के लिए मगध नंबर एक गाड़ी थी. वक्त पर चलती थी. फिर संपूर्ण क्रांति आई. मगध पिटने लगी. संपूर्ण क्रांति नंबर वन बन गई और वक्त पर पहुंचाने की गारंटी देने  लगी. फिर, राजधानी सातों दिन के लिए मिल गई. अब राजधानी नंबर वन हो गई'. 

मैंने पूछा, 'संपूर्ण क्रांति का क्या हुआ'? 

वो बोले, 'होना क्या था? पिटने लगी. हमारे यहां तो कोई एक ही नंबर वन रह सकता है'. 

ज़रा नंबर का खेल समझिए, साहब 

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