... तब आता है रामराज
मैंने कभी रामायण नहीं पढ़ी. रामकथा हज़ारों बार सुनी है.अखंड पाठ में रामचरित मानस के कुछ हिस्सों का पाठ किया है. रामनवमी को हर साल रामजन्म प्रसंग की चौपाईयां गाईं हैं. रामायण सीरियल भी देखा है. पूरा. आज भी जब कभी मोरारी बापू मिल जाते हैं टीवी पर रामकथा कहते तो बैठ जाता हूं, सुनने. रामकथा के कई हिस्से हैं, जिनको लेकर कौतुहल होता है. बार-बार मन में प्रश्न आता है. ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? कथा के इस प्रसंग में भला सीख क्या है?
साभार |
ऐसा ही एक प्रसंग सीता जन्म का है. ये कौतुहल सीता जी के जन्म को लेकर नहीं बल्कि राजा जनक के हल चलाने को लेकर है. हिंदुस्तान आज़ाद होने के करीब तीन दशक बाद पैदा हुए मेरे जैसे लोगों को कभी राजशाही को देखने परखने का मौका नहीं मिला.लोकशाही देखी है. वोट दिया है. नेताओं के वादे सुने हैं. जनसेवक की तरह काम करने का भरोसा देने वाले नेताओं को जीतने के बाद सुल्तान की तरह बर्ताव करते देखा है. कई बार कोफ़्त भी हुई है. खासकर तब, जब वोट के लिए दरवाजे पर आकर पैर छूने वाला नेता जीतने के बाद उसी वोटर के लिए दरवाजा तक नहीं खोलता. ऐसे ही मौकों पर मन में सवाल उठता है कि जब पांच साल के लिए कुर्सी पर बैठने वाले 'सेवक' के अंदर इतना गुरुर आ सकता है तो राजा फ़िर राजा ही ठहरा. सर्वशक्तिमान. ना जनता ने उसे चुना है. ना उसे आगे जनता से वोट लेना है. फ़िर भला वो जनता की पुकार पर हल लेकर क्यों उतर आया?
अकाल से जनता मरती तो मरती रहती. राजा जनक राहत और मुआवजा बंटवा देते. ज्यादा होता तो अपने सैनिकों को किसानो की मदद के लिए लगा देते. उनके लिए कौन सा अनाज घट रहा था, जो हल लेकर खेत जोतने निकल पड़े. जनक कोई तीसरी और चौथी दुनिया में शुमार होने वाले गरीब देश के राजा भी नहीं थे. मिथला की संपन्नता की कहानियां तो चारों ओर फैली थी. ऐसे ही सवालों के बीच एक ज्ञानी मित्र ने चाणक्य नीति बताई.
प्रजासुखे सुखं राज्ञ: प्रजानां तु हिते हितम्
नात्मप्रियं हितं राज्ञ: प्रजानां तु हिते हितम्
मतलब ये कि प्रजा के सुख में राजा का सुख है. उसे प्रजा के हित में ही अपना हित दिखना चाहिए. जो खुद को अच्छा लगे उसमें राजा का हित नहीं, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें हैं.ये नीति आज के शासकों को भी पता होगी. जब मेरे जैसे अदना शख्स को ज्ञानियों की संगत मिल जाती है तो राज चलाने वालों के पास क्या कमी होगी. फिर उन्हें किसानों का दर्द क्यों नहीं दिखता ?
बेमौसम बरसात ने देश के तेरह राज्यों में लाखों किसानों को तबाह कर दिया है. प्रधानमंत्री जी दावा करते हैं कि वो किसानों के मन की बात जानते हैं. उन्होंने मुआवजे की रकम बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दी. फ़सल बर्बादी पर मिलने वाले मुआवजे में भी राहत का एलान किया है. अब 33 फ़ीसदी फ़सल का नुकसान होने पर भी मुआवजा मिलेगा. लेकिन किसान खुश क्यों नही हैं ?
हिंदुस्तान की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी किसानों का हितैषी होने का भरम रखती है. उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी दो महीने की छुट्टी से लौटे तो सबसे पहले किसानों से मिले. उनकी पार्टी किसानों की समस्याओँ के जरिए संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में सरकार को घेरना चाहती है. लेकिन सवाल ये है कि क्या किसानों का दर्द उनके लिए सरकार को बैकफुट पर लाने का हथियार भर है ?
प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि किसानों की मदद के लिए राज्य और केंद्र मिलकर काम करेंगे, लेकिन असल स्थिति क्या है? यूपी में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि केंद्र ने किसानों के लिए पांच सौ करोड़ से ज्यादा रकम दी है. वहीं यूपी सरकार का दावा है कि उसे अब तक कोई मदद नहीं मिली.
मुआवजा बांटे जाने की कहानी किसी से छुपी नहीं है. आला अधिकारी से लेकर पटवारी तक सरकारी तंत्र के सब कारिंदे बेहाल किसान से चक्कर लगवा रहे हैं और सारी सरकारें किसानों की मदद के नाम पर अपनी पीठ ठोक रही हैं. बेचारगी की इस चक्की में पिसता किसान हर दिन जान दे रहा है. मुझे अच्छा लगा जब प्रधानमंत्री ने फ्रांस में कहा कि अब हिंदुस्तान की पहचान 'स्कैम इंडिया' की नहीं 'स्किल इंडिया' की होगी. ज्यादा अच्छा लगता अगर वो कुदरत की तबाही में बर्बाद हुए किसानों की मौत पर सॉरी कहते. वो कहते, हिंदुस्तान के लिए अच्छे दिन आ गए हैं, लेकिन किसानों का ख्याल रखने में कमी बाकी है. आखिर वो 'मर जवान, मर किसान' का नारा बदलने आए हैं. फिर हिंदुस्तान की असल स्किल तो खेती ही है. ताजा विपदा में बर्बाद होकर कितने किसान मरे हैं, इस आंकड़े की बात कर मैं दर्द बढ़ाना नहीं चाहता. हालांकि, ये कहना जरुरी है कि जब किसान उगाता है, तभी हिंदुस्तान खाता है. ये सच ही मुझे बताता है कि हमारे पुरखों ने हल थामने वाले कृष्ण के बड़े भाई को भगवान बलराम क्यों कहा. इसी सच को स्थापित करने के लिए सर्वशक्तिमान राजा जनक हल लेकर खेत में उतर आए. आज आपके सामने जब थाली सजे तो आप भी अपने मन की कसौटी पर इस सच को तोलिए. खुद से पूछ कर देखिए, क्या ये सच नहीं कि जब राजा हल चलाता है तभी रामराज आता है?
बरा ही भावुक एवम मार्मिक लेख आज के किसान भारत का ।
जवाब देंहटाएंसौ फीसदी सत्य "जब राजा हल चलाता है तभी रामराज्य आता है"।।
बरा ही भावुक एवम मार्मिक लेख आज के किसान भारत का ।
जवाब देंहटाएंसौ फीसदी सत्य "जब राजा हल चलाता है तभी रामराज्य आता है"।।
शुक्रिया निलेश, इस पोस्ट की सार्थकता तभी है, जब ये ज़्यादा लोगों तक पहुंचे और इसके माध्यम से किसानों की समस्याएं सामने आएं. उनके निदान पर चर्चा हो. यथासंभव मदद की व्यवस्था भी की जाए.
जवाब देंहटाएंBahut sahi aaklan hai, Jai Jawaan Jai kisaan ko Mar Jawaan Mar kisaan bana diya hai..True story..
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण किया आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शंभु दादा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शंभु दादा
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