... हैसियत नहीं उसके जज़्बात देखो
ये कहानी एक बच्ची सुनाती है. उम्र होगी कोई पांच- छह साल. अपने पिता की कहानी. कहानी में मां का कोई ज़िक्र नहीं. दो ही किरदार हैं. पापा और बेटी. लड़की की नज़र में दुनिया का कोई भी शख्स उसके पापा से बढ़कर नहीं. वो सबसे हैंडसम है. दमदार है. दिलदार है. बेटी की हर ख्वाहिश उनकी ज़िंदगी का मकसद है.
वो सबसे सच्चे आदमी है. सबसे अच्छे इंसान है. लेकिन, बेटी को एक शिकायत है. पापा, उससे झूठ बोलते हैं. अपने काम के बारे में. बेटी के सामने वो खुद को एक अमीर आदमी के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन, हक़ीकत में उनके पास करने को ऐसा कोई काम नहीं, जिस पर ज़माना फख्र कर सके. दरअसल, वो बेरोजगार हैं. लेकिन, बेटी से उन्हें इस कदर मुहब्बत है, जिसके आगे बेकारी बेमानी हो जाती है. बेटी छोटी है, लेकिन, उसके सपने बड़े हैं. उसे खिलौने चाहिए. सुंदर कपड़े चाहिए. अच्छा स्कूल चाहिए. पापा की ज़िद है, उसका हर अरमान पूरा हो. ज़िद है तो जतन भी हो ही जाता है. बेटी के लिए वो, जो काम मिले करने को तैयार रहते हैं. बोझ उठाते हैं. होटल में वेटर बन जाते हैं. कई बार तो वॉशरुम और टॉयलेट की सफ़ाई भी करते हैं. शाम को भरी जेब के साथ टिपटॉप बने बेटी के सामने पहुंचते हैं.
कहानी में ट्विस्ट आता है. एक दिन बेटी को सच पता चलता है. मासूम बच्ची उसी एक पल में बड़ी हो जाती है. उसे दर्द भी है और शिकवा भी. पापा पर फ़ख्र भी है और उनकी बेबसी पर मायूसी भी. आंसू छलक जाते हैं. पहले बेटी के, फिर पापा के. ये कहानी एक छोटे से वीडियो के तौर पर दोस्तों ने व्हॉट्सएप पर शेयर की थी. यकीन मानिए, वक्त के ताप ने आंखों की नमी को भाप ना बनाया हो तो ये वीडियो देखते वक्त आंसू रोकना आसान नहीं होगा. और अगर छलके तो ये आंसू एक बाप के होंगे.
ये कहानी मैंने लिखकर दोहराई है तो सिर्फ इसलिए कि एक ख़बर हर किसी का ध्यान खींच रही है. बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के एक छोटे से कस्बे नरकटियागंज की एक होनहार लड़की भारत की अंडर-14 फुटबॉल टीम की कप्तान बन गई है. अब फ़ुटबॉल हिंदुस्तान में कितना लोकप्रिय है, सब जानते हैं. हमारे दोस्त गुंजन कुमार की तरह अगर हर जानकारी को दिमाग में फीड करने का सॉफ्टवेयर ना हो तो शायद आप भारत की फुटबॉल टीम के कप्तान का नाम भी ना बता सकें. फ़िर, सोनी नाम की इस लड़की के अंडर-14 टीम का कप्तान बनने की इतनी चर्चा क्यों है? वजह ये है कि सोनी के पिता नेपाल में तांगा चलाते हैं. सोनी गुदड़ी से निकली हुई 'लाली' है. उसकी कामयाबी बड़ी इसलिए है कि वो गरीब की गोद में पलने के बाद भी मुफलिसी को फुटबॉल की तरह ठोकर मारते हुए कप्तान बन गई है.
ये अपने तरह की इकलौती ख़बर नहीं. साल- छह महीने में ऐसी ख़बरें निकल ही आती हैं. एक ख़बर मुंबई की काबिल लड़की की थी, जिसने सीए के एग्ज़ाम में टॉप किया था. उसके पिता अॉटोरिक्शा चलाते हैं. ऐसे ना जाने कितने पिता हैं, जो बच्चों को अपनी हैसियत से बड़े सपने देखने का हौसला देते हैं. लेकिन, जब वक्त नतीज़े का आता है, तो ज़िक्र बच्चे की कामयाबी और बाप की ग़रीबी का होता है. व्हॉट्सएप के वीडियो में कहानी सुनाने वाली बच्ची को शिकायत अपने पिता के झूठ से थी और मेरा एतराज बाप की 'गरीबी' के बाज़ार में खड़े होने को लेकर है. इस गरीब के हौसले को उस वक्त कोई सलाम नहीं करता, जबकि वो अपनी बेटी या बेटे के सपनों को पंख लगा रहा होता है.
हमने और आपने गरीबी और कामयाबी के मेल की ऐसी कहानियों पर लोगों को भावुक और दीवाना होते देखा है. खासकर राजनीति में. गरीब और गरीबी को हथियार बनाकर कांग्रेस ने हिंदुस्तान पर करीब आधा सदी राज किया है. कांग्रेस को मात देने वाले नरेंद्र मोदी ने भी अपनी गरीबी की कहानी को जमकर भुनाया है. मोदी की जीत में उनके गरीब 'चायवाला' होने का असर कम नहीं रहा. लेकिन, मज़ा देखिए, ये 'गरीब चायवाला' जब प्रधानमंत्री बनके जन्मदिन पर बूढ़ी मां का आशीर्वाद लेने जाता है तो वो कुछ मांगती नहीं. हाथ में कुछ रुपये थमा देती है. मां-बाप के जज़्बात हैसियत से नहीं बदलते. आपने कहानियां ऐसी भी सुनी होंगी, जहां तरक्की के बाद बच्चे गरीब मां- बाप का परिचय देने से कतराते हैं. लेकिन, कोई मां या बाप ऐसा करता है, इसके किस्से शायद ही सामने आते हों. बात निकली है तो जमाने के चलन की भी पड़ताल हो जाए. अमीर के बच्चे कामयाबी हासिल करते हैं तो क्रेडिट 'बड़े बाप' को जाता है. गरीब के बच्चे कुछ करते हैं तो किस्सा बच्चे के करिश्मे का बनता है. राजनीति से प्रेरित बाज़ार ने ऐसा ही ढर्रा बना दिया है. एक तरफ़ बच्चे से नाइंसाफ़ी होती है तो दूसरी तरफ़ मां-बाप की कुर्बानी की अनदेखी होती है. ऐसी कहानियों का बाज़ार सिर्फ़ हैसियत देखता है जज़्बात नहीं. मैं गरीबी की दीवार पार कर कामयाबी की डगर पर बढ़े बच्चों की ख़बर के ख़िलाफ़ नहीं. इनसे तो तमाम लोगों को प्रेरणा मिलती है. गुजारिश तो सिर्फ़ इतनी है कि बाप को बाज़ार में खड़ा करके उसके जज़्बातों का मोल ना लगाओ. यकीनन, उसे ख़बर होने से ज्यादा खुशी बाप होने में मिलती है.
Gazab
जवाब देंहटाएंDil ko chhoone wali kahani..
जवाब देंहटाएंबरा ही मार्मिक लेख आपके ब्लॉग से सुबह की शुरुआत न कर पाने के कारन एक बैचैनी थी जो की अंतिम पंक्ति के साथ मन में कई भावनाओ को जीवंत कर गई। शानदार।।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, वेंकटेश जी, कृष्ण मुरारी जी.
जवाब देंहटाएंनिलेश, आपका भी आभार. 'रायशुमारी' का मकसद उन मुद्दों पर बात करने का है, जो अमूमन अनसुने रह जाते हैं. मैं आपके साथ शेयर करना चाहूंगा कि किसानों के मुद्दों की ओर ध्यान खींचने के लिए जो पोस्ट ब्लॉग पर डाली गई थी, उसे पाठकों के बीच शानदार रेस्पॉन्स मिला है. ब्लॉग पर आने और पोस्ट शेयर करते रहने के लिए शुक्रिया. उम्मीद है, ये तालमेल आगे भी बना रहेगा.
मैंने यह वीडियो देखा था। आपने वीडियो के जज्बातों को शब्दों के सीप में भर कर मोती बना दिया।
जवाब देंहटाएं...ये एक पिता की नज़र है! दादा!
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