सोमवार, 17 अगस्त 2015

हवा बदल सकती है

लेकिन फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता 

बाल्की का वो एड अद्भुत था. 

काका की मौत के कुछ दिन पहले ही टीवी पर दिखना शुरु हुआ था.

दुनिया ये भूली नहीं थी कि काका यानी राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे लेकिन उन दिनों वो किस हाल में थे, किसी को नहीं पता था. न फिक्र थी. 

अचानक वो विज्ञापन आया और छा गया. हरेक के दिलो दिमाग पे. 

वो फैन्स चौंक पड़े, जिन्होंने सत्तर के दशक में राजेश खन्ना के चमकते चेहरे, अदा के साथ गर्दन को झटका देते हुए आंख बंद करने के अंदाज पर निसार होकर उन्हें सुपरस्टार की पदवी दी थी. 

कांपती आवाज. झुकी हुई पीठ. सफेद दाढ़ी शायद पिचके हुए गालों को छुपाने के लिए रखी गई थी, लेकिन वो ऐसा करने में नाकाम थी. 

आंख पर चश्मे था. लेकिन देखने वाले ये परखने से नहीं चूके कि काका की आंखों में वही रूमानियत बाकी है. 

सुनहरे दिनों की याद दिलाने वाली कोई और बात बाकी थी तो वो था सुपरस्टार होने का गुरुर. 

पैंतीस सैकेंड के एड में जब राजेश खन्ना इठला के कहते हैं 

'हवा बदल सकती है लेकिन फैन्स हमेशा मेरे रहेंगे' 

'बाबू मोशाय, मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता' 

तो शायद ही किसी को लगा हो कि वो गलत दावा कर रहे हैं. 

आपको हैरत हो सकती है, भला आज में इस एड को क्यों याद कर रहा हूं. क्यों उसकी बात कर रहा हूं. बताता हूं, 
इसकी वजह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. 

यूएई के दौर पर गए मोदी के लिए अबू धाबी में वही दीवानगी दिखी, जो राजेश खन्ना जैसे बॉलीवुड के गिने-चुन सुपरस्टार्स को नसीब होती है. राजनीति में तो उसकी कल्पना बेमानी है. 

उनका शेख जायद मस्जिद पहुंचना कई मामलों में अनूठी बात थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार एक मस्जिद में दाखिल हुए. 

लेकिन, इससे भी बड़ा अजूबा था, वहां मौजूद लोगों का 'मोदी- मोदी, मोदी-मोदी' कहते हुए प्रधानमंत्री को चीयर करना. हमने ये भारत में देखा है. अमेरिका में देखा है. ऑस्ट्रेलिया में देखा है और अब यूएई में देख रहे हैं.

मोदी का यूएई दौरा तय होने के बाद ज्यादातर लोग जान गए हैं कि वहां करीब 26 लाख हिंदुस्तानी रहते हैं. 

विरोधी कह सकते हैं कि ये इवेंट मैनेजमेंट का कमाल है. 

लेकिन, अबू धाबी के चंद एक लोग, जिनसे मेरी बात हुई, वो ऐसा नहीं मानते. 

उन्हें मोदी के दौरे के इर्द-गिर्द एक अजब सा उत्साह दिख रहा है. 

अब बात हवा बदलने की भी कर लेते हैं. घर में अब मोदी के लिए वो माहौल नहीं दिखता, जिसके दम पर उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता था. 

उनकी सरकार कई सवालों के घेरे में है. मोदी से लोगों का मोह भले ही भंग न हुआ हो, लेकिन उनको लेकर दिखने वाली दीवानगी जरुर घटी है. 

संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के हंगामे में कार्यवाही न चल सकी तो तमाम लोगों ने मोदी की भूमिका पर भी सवाल उठाए. 

विपक्ष को तो खैर उनके हर कदम में खोट नज़र आता ही है. फिल्म हो या फिर राजनीति जब हवा बदलने लगती है तो पैरों के नीचे की जमीन संभालना मुश्किल होता है. फैन्स तो खैर सबसे पहले साथ छोड़ते हैं. 

और, जो बदलते हालात के बाद भी फैन्स को तिल भर भी नहीं हिलने दे. अपने तिलिस्म में बांधे रखे. वो सदाबहार सुपरस्टार होता है. काका की तरह. 

पहले लाल किले से बच्चों के बीच की तस्वीरें और अब यूएई का माहौल गवाही देता है कि मोदी ने भी स्टारडम का वो फॉर्मूला खोज लिया लगता है, जहां वो हर विरोधी से कह सकते हैं,  

'हवा बदल सकती है लेकिन फैन्स हमेशा मेरे रहेंगे' 

'मित्रों, मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता' 

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