गुरुवार, 20 अगस्त 2015

अगर करनी है चोरी

तो मत सुनना धार्मिक कथा 

चोरों को धार्मिक कथाएं नहीं सुननी चाहिए. 

बताते हैं कि किसी दौर में चोरों के गैंग में ये सबसे जरुरी नियम होता था. 

इसे लेकर एक कहावत भी बन गई 

'चोर सुने धरम के कथा'? 

यानी चोर कहीं धर्म की कथा सुनते हैं? 

कहावत कई बार सुनी थी. मतलब बहुत बाद में समझ आया. 

मतलब सीधा सा है. चोर अगर धर्म की कथा सुन लेगा तो फिर चोरी नहीं कर पाएगा. यानी अपने धंधे से ही मुंह मोड़ लेगा. 

भगवान वाल्मीकि के साथ ऐसा ही हुआ था. वो चोर नहीं डाकू थे. संतों से एक मुलाकात क्या हुई, ब्रह्म के समान हो गए. 

कोई अबोध पाप और पुण्य का अंतर नहीं जानता. वो जो सुनता है, उसी के आधार पर पाप और पुण्य की तस्वीर बनाता है. 


सुनकर कुछ कर गुजरने का जज्बा वीरगाथा काल की रचनाओं से भी जाहिर होता है. 

युद्ध में उतरने के पहले हर किसी को डर लगता है. लेकिन, अगर कानों में ऐसी कविता गूंजे जिसे सुनते ही खून खौल उठे, बाजू फड़कने लगे तो डर भला कहां ठहरेगा? 

ऐसी ही एक कविता का करिश्मा था कि शूरवीर महाराज पृथ्वीराज चौहान ने आंखें गंवाने के बाद भी चार बांस, चौबीस गज और आठ अंगुल की ऊंचाई पर रखे सिंहासन पर बैठे 'सुल्तान' को ऐसा सटीक तीर मारा कि उसकी आत्मा शरीर छोड़कर हमेशा के लिए चली गई. 

ऐसी कविताएं और कहानियां आज भी असर दिखाती हैं. 

वैद्यनाथ धाम जल चढ़ाने गए छोटे भाई निलेश ने ये तस्वीर भेजी है. कैप्शन लिखा है- आधुनिक श्रवण कुमार. 

सतयुग में श्रवण कुमार ने अपने अंधे मां-बाप को इसी तरह तीर्थ कराया था. 

इस नौजवान ने अगर श्रवण कुमार की कहानी नहीं सुनी होती तो शायद अपनी बूढ़ी मां को इस तरह से वैद्यनाथ धाम ले जाने का आइडिया भी नहीं आता.  

105 किलोमीटर पैदल चलना ही किसी तपस्या से कम नहीं. ऊपर से मां का वजन. 

मैंने किसी से ऐसा ही किस्सा सुना था. एक छोटी लड़की कंधे पर एक बच्चे को रखे तेज़ी से पहाड़ी चढ़े जा रही थी. पहाड़ी के ऊपर उसका घर था. उस पहाड़ी पर कई और लोग चढ़ाई कर रहे थे. उनमें से ज्यादातर खाली हाथ थे लेकिन फिर भी चढ़ते-चढ़ते हांफने लगे. 

वहीं उस छोटी लड़की के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. किसी ने पूछा कि बेटी ये बोझ लेकर चढ़ती हो, थकती नहीं. बच्ची ने तपाक से जवाब दिया, 'थकूंगीं क्यों  ये बोझ नहीं मेरा भाई है'. 


इत्तेफाक की बात है. धर्म की राह दिखाने वाली एक कहानी का असर बड़े भाई कपिल शर्मा के किस्से में भी मिला. 

कपिल भाई भगवान दत्तात्रेय के भक्त हैं. 

भगवान दत्तात्रेय के भक्तों की एक परंपरा है. अगर कोई उनसे कुछ खाने या पीने के लिए मांगता है तो वो कभी मना नहीं करते. 

एक बार कपिल भाई वाराणसी गए. विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर थे. किसी ने खाने के लिए कुछ मांग लिया. अब श्मशान पर ये मांग कैसे पूरी होती. जैसे- तैसे उन्होंने व्यवस्था की. 

उसी वक्त संकल्प लिया और पास के सिंधिया घाट पर भंडारा शुरु हो गया. 

वाराणसी मोक्षदायिनी नगरी मानी जाती है. अनगिनत लोग आखिरी सांस लेने यहां पहुंचते हैं. इनमें से कुछ की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती. उनके संस्कार के बाद परिवार के सामने भोजन की समस्या रहती है. ये भंडारा ऐसे लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है. 

ये तमाम अच्छी बातें अच्छी कहानियों का नतीजा हैं. 

तभी तो बापू कहते थे, बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो 

(स्पष्टीकरण: ये पोस्ट उनके लिए नहीं, जो चोरी को संसार का सबसे उत्तम काम मानते हैं. )

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