सफलता न मिले तो पैसे वापस
वैधानिक चेतावनी पहले दे देता हूं.
मैं कोई उपदेशक नहीं हूं. गाइड नहीं हूं. मैनेजमेंट गुरु नहीं हूं.
सिर्फ अनुभव के आधार पर एक जानकारी बांटना चाहता हूं. आखिर हमने रायशुमारी के लिए ही तो ये मंच बनाया है. ये बात अलग है कि अभी राय एकतरफा है.
यानि, बातें सिर्फ मेरी तरफ से ही होती हैं. चिंटू जी या निलेश जैसे एक- दो दोस्त ही इतना वक्त निकाल पाते हैं कि मेरे कहे पर जो सोचते हैं, अपनी राय रख देते हैं.
हालांकि,आप जवाब दे या न दें, मेरे लिए इतना ही काफी है कि मेरे किस्से पढ़ने के लिए अपना कीमती वक्त निकाल लेते हैं.
आज जो बात करनी है, उसे करते वक्त थोड़ा डर भी लग रहा है. डर इसलिए कि महीना सावन का है. शिव का है. फिर भी कहानी सुनाने की हिम्मत जुटाई तो सिर्फ इसलिए कि महादेव ही हैं, जो डर के आगे जीत का आशीर्वाद देते हैं. मतलब कि मुझ जैसे डरपोकों को 'अभय' बना देते हैं.
कहानी शंकर भगवान की है लेकिन उसमें रहस्य कामयाबी का छुपा है.
कामयाबी के लिए सबसे जरुरी क्या है?
टैलेंट, मेहनत, किस्मत या फिर किसी की मेहरबानी?
इस दमघोंटू, गलाकाटू मुकाबले के दौर में हर किसी के पास कायमाबी के अपने फंडे हैं.
जो कामयाब हैं वो खुद को ही 'फॉर्मूला' मान लेते हैं.
जो नाकाम हैं, उनके पास होते हैं बहाने.
मसलन, कम तो हम भी नहीं, बस हम पर .... नहीं होती.
यानि वो कहना चाहते हैं कि सफलता.... पर टिकी है.
मैं तो बाबा तुलसीदास के फंडे पर भरोसा करता हूं.
'हानि-लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ'
ये विधि संविधान निर्माताओं या सांसदों का बनाया कानून नहीं. इसे तो विधाता ने रचा है.
बस मेरा सवाल ये है कि विधाता हमें कामयाब होते क्यों नहीं देखना चाहेगा?
मेरे भगवान ने कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े होकर स्पष्ट घोषणा की थी
'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि'
मतलब आप जानते हैं. कर्म करो, फल की इच्छा मत करो.
कर्म के जरिए कामयाबी का फल कैसे मिलता है, शिव से जुड़ी कहानी यही बताती है.
ये कहानी काल्पनिक है या सच मुझे नहीं पता. ये यकीन जरुर है कि आप में से ज्यादातर ने इसे सुना या पढ़ा जरुर होगा.
ये कहानी एक गांव की है. एक उजाड़ सा गांव. उस गांव में गिने-चुने घर थे.
गांव के बाहर एक वीरान सा शिव मंदिर था. मंदिर कब बना था किसी को नहीं पता था. मंदिर में ज्यादा लोग आते भी नहीं थे.
गांव की सरहद से दो कोस दूर होने की वजह से हर दिन मंदिर जाना अपने आप में एक तपस्या थी. छोटे गांव में आबादी ज्यादा नहीं थी तो आने जाने के साधन भी कम थे. मंदिर जाना हो तो पदयात्रा ही करनी होती थी.
गांव के आस्थावान शिवरात्रि या सावन के सोमवार जैसे मौकों पर ही मंदिर का रुख करते थे.
गांव के दो लोग ऐसे थे जो हर रोज मंदिर जाते थे.
इनमें से एक की गांव में बड़ी इज्जत थी. उसे गांव का सबसे आस्थावान व्यक्ति माना जाता था. शिवलिंग पर दूध मिला जल चढ़ाए बिना वो खाना तो दूर गले के नीचे पानी भी नहीं उतरने देता था.
दूसरे आदमी को गांव में कोई पसंद नहीं करता था. एक हादसे में उसका परिवार उजड़ गया था. तब से वो भगवान से रुठ गया था. गुस्सा भी ऐसा वैसा नहीं था. इस कदर था कि वो रोज शिव मंदिर जाता. अपने पांव से जूता निकालता. हाथ में लेता और शिवलिंग पर दे दनादन.. दे दनादन करने लगता.
ये क्रम तब तक चलता जब तक कि वो थककर पस्त नहीं हो जाता.
जब इस सिलसिले की शुरुआत हुई, तब गांव वालों ने इसे हादसे का असर माना.
शोक के दिन बीते तो गांव में सभा हुई. सबने उसे समझाया कि हादसे को भूल जाओ. जिंदगी में आगे बढ़ो. क्या भगवान तुम्हारे परिवार को बचाने आते. तुम्हारी किस्मत में यही लिखा था.
भगवान तो अदृश्य शक्ति है. वो ताकत देता है. मदद तो तुम्हें अपनी खुद ही करनी होती है. तुम्हारा परिवार नहीं बचा तो ये तुम्हारी गलती है. तुम इसके लिए भगवान को कैसे कुसूरवार ठहरा सकते हो.
तुम्हें गुस्सा था. गम था. तो हम अब तक चुप रहे. अब बहुत हो चुका है. या तो गांव छोड़कर चले जाओ. या फिर गांव की मर्यादा का ध्यान रखो.
तुम शिवलिंग पर जूते बरसाते हो और चोट हमें लगती है. आगे से ऐसा मत करना.
पंचायत उठी. सोचा मामला सुलझ जाएगा. लेकिन, वो दिलजला कहां मानने वाला था.
अगली सुबह फिर मंदिर पहुंच गया. उतारा जूता और शुरु हो गया. दे दनादन. दे दनादन.
भक्त महाराज भी मंदिर में थे. उन्होंने गांव आकर किस्सा बाकी लोगों को बयां किया. उसके दुस्साहस को बताते वक्त उनके आंसू बह रहे थे.
गांव के भक्तराज ने एलान कर दिया, 'अगर समस्या का समाधान नहीं हुआ तो मैं अन्न जल त्याग दूंगा'.
कुछ आंसुओं का असर, कुछ भक्तराज की धमकी का प्रभाव और कुछ भगवान के अपमान की पीडा. गांव के सारे मुसटंडे नौजवान हाथ में लाठियां लिए मंदिर की तरफ दौड़ लिए.
भगवान पर जूता बरसाने वाले को पकड़ा और धुलाई शुरु कर दी.
तब तक मारते रहे जब तक कि वो अधमरा नहीं हो गया.
पीटने वालों ने सोचा मामला खत्म हो गया.
लेकिन ये कहानी तो किसी और मोड पर जानी थी.
भगवान की जूतों से आरती करने वाले को न मानना था, न वो माना.
गांव वाले उसे पीटते गए और वो भगवान से हिसाब चुकाता गया.
न उसने गांव छोड़ा. न मंदिर जाना छोड़ा. न जूते बरसाना छोड़ा.
एक दिन गांव में आफत आ गई. शाम से तेज़ बारिश शुरु हो गई. ऐसी बारिश मानो प्रलय आ गई हो. मोटी-मोटी बूंदे. बादलों की तेज़ आवाज और कड़कड़ाती बिजली. रात घिरने लगी तो बारिश तेज़ होने लगी. गांव की गलियां और सड़कें नदी बन गईं. घरों में पानी घुसने लगा.
लोगों ने प्रार्थना शुरु कर दी. भक्तराज का घर टीले पर बना था. पूरा गांव जैसे तैसे उसी में समा गया. घंटा बीता, दो घंटे बीते, रात बीतने को आई लेकिन बारिश नहीं रुकी. आधा गांव डूब सा गया.
आफत में घिरे लोगों ने मंदिर में जूते बरसाने वाले शख्स को कोसना शुरु कर दिया. गांववालों का कहना था कि उसकी गलती की सज़ा पूरे गांव को मिल रही है.
सुबह होने पर भी बारिश बंद नहीं हुई. भक्तराज के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. पक्का मकान था. अंदर चूल्हा जला और गांव के लोगों के लिए चाय नाश्ता तैयार होने लगा. आखिर भूखे पेट कोई भगवान से बारिश बंद होने की प्रार्थना करे भी तो कैसे?
फिक्र थी तो सिर्फ भक्तराज की. वो तो भगवान को जल चढ़ाए बिना पानी तक नहीं पीते. दोपहर तक तो भक्तराज पानी, चाय नाश्ते का आग्रह ठुकराते गए. उम्मीद थी बारिश बंद हो जाएगी. पानी उतरेगा तो जैसे तैसे मंदिर पहुंच ही जाएंगे. दोपहर बाद तक बारिश हल्की नहीं हुई तो हिम्मत जवाब देने लगी.
चेहरे से हवाई उडने लगी. बारिश बंद होने से ज्यादा चिंता ये सताने लगी कि जाने कब तक कुछ खाए पिए बिना रहना होगा.
पत्नी ने ताड़ लिया. पतिव्रता नारी व्रत का तोड़ निकालने लगी.
कहा, 'भगवान को जल चढ़ाने की चिंता क्यों करते हो. आज तो स्वयं इंद्रदेव भगवान की सेवा में जुटे हैं. इंद्रासन खतरे में होगा. तभी तो तुम जैसे भक्त को रोकने की व्यवस्था की है. फिर तुम्हें कौन सा इंद्र बनना है. भगवान को यहीं याद करके जल चढ़ा दो. पूरा गांव डूबा हुआ है. तैर के भी नहीं पहुंच पाओगे. गए तो फिर लौटोगे कैसे. तुम नहीं लौटे तो मेरा और बच्चों का क्या होगा. हमारा ध्यान रखना भी तो भगवान की ही सेवा है. यहीं जल चढाओ. पानी-पानी में मिलेगा और भोले बाबा तक पहुंच जाएगा. तुम्हारी तपस्या भी नहीं टूटेगी'.
गांव के दूसरे लोग भी यही दलील देने लगे. भक्तराज ने लोटे में दूध मिला जल लिया. भगवान शिव को याद किया. बारिश की वजह से घर के बाहर जमा हुए पानी में डाल दिया.
पूजा की रस्म होते ही खाने की थाली पर टूट पड़े.
कीर्तन का शोर और तेज़ हो गया. बारिश बंद होने की प्रार्थना गूंजने लगी.
भक्तराज जिस वक्त खाना खाकर उठे, गांव के एक बच्चे को जूता मारने वाले की याद आ गई.
उसने पूछा कि पंडित तो मंदिर जा नहीं पाए. उस पगले ने क्या किया होगा.
किसी ने कहा, 'मर गया होगा'.
'उसका घर तो वैसे भी नीचे है. यहां आया नहीं. अब तक तो जल समाधि हो गई होगी. उसी के पापों का फल तो हम भुगत रहे हैं. शिव पर जूते बरसाओगे तो क्या प्रकृति देवी माफ करेंगी. आखिर उनकी पत्नी हैं. देखा, पंडित जी को बचाने के लिए पंडिताइन ने कैसी दलीलें दीं. फिर वो तो भगवान की पत्नी हैं. ऐसे ही थोड़े छोड़ देंगी'.
ये अनुमान सिर्फ अनुमान ही थे. किसी ने ये नहीं सोचा कि जो भगवान पर जूता उठाने से नहीं डरा. जो गांव के मुस्टंडों की मार से नहीं डरा. जो मौत की आंखों में आंखें डालकर भगवान से खुद पर हुए हर जुल्म का हिसाब मांगता रहा. वो बारिश की आफत से क्या डरेगा.
घनघोर बारिश में वो पानी से लड़ता रहा. मंदिर जाने का वक्त हुआ तो पानी को काटता, तैरता हुआ आगे बढ़ा. रास्ते में कूड़ा कचरा मिला तो किनारे कर दिया. तैरते सांप मिले तो हाथ से उठाकर फेंक दिए.
जूते पैरे से निकलकर बहने लगे तो एक बहती रस्सी पकड़कर जूतों की माला बनाई और गले में पहन ली.
तय वक्त पर वो मंदिर पहुंच गया. आसमान में बिजली कड़क रही थी. बादल ऐसे बरस रहे थे मानो किसी ने तेज़ धार वाला नल खोल दिया हो. मंदिर में भी पानी दाखिल हो गया था. शिव लिंग पानी में डूब गया था. इतने पर भी उसका गुस्सा ठंडा नहीं हुआ था.
उसने गले से जूतों की माला उतारी. हाथ में थामी. शिवलिंग तक पहुंचने को डुबकी लगाई और शुरु हो गया.
अचानक, बिजली कड़की. बहुत तेज़ आवाज हुई. इतनी रोशनी हुई मानो सूरज जमीन पर उतर आया हो. जूते बरसाते उसके हाथ अचानक थम गए. शिवलिंग से साक्षात शिव प्रकट हो गए.
भगवान ने कहा, 'तू है मेरा सच्चा भक्त. तू आज भी मुझे भेंट देने चला आया. न तुझे प्रकृति का कोप रोक पाया और न ही मौत का डर. मांग क्या मांगता है'.
भगवान का इतना कहना था कि बरसों से जमा बांध टूट गया. गुस्सा आंसुओं में बह गया. जूते कहां गए पता नहीं चला. वो शिव के पैरों में गिर पड़ा. रोते हुए भगवान से पूछा, 'प्रभु, मुझ पापी के लिए आप क्यों प्रकट हुए. आपका असल भक्त तो गांव के बीच रहता है. आपने उसे तो दर्शन नहीं दिए. मुझ पर ऐसी कृपा क्यों. मुझे तो दंड देना चाहिए'.
शिव की गंभीर आवाज गूंजी.
'जो हर हाल में मुझे याद करे उससे बड़ा भक्त कौन होगा. इस जानलेवा बारिश में जब मेरा तथाकथित भक्त अपने घर के बाहर जमा हुए गंदे पानी में मुझे जल चढ़ाकर भक्तराज कहला रहा था, तब तू जान हथेली पर लिए मुझे जूतों की भेंट देने चला आया. तेरे जूतों से मुझे चोट नहीं लगती. मैं तो ज़हर को गले के नीचे उतरने ही नहीं देता. मेरे बच्चे, जो हर वक्त मेरे बारे में सोचता है, मैं उसके बारे में क्यों नहीं सोचूं'.
ये कहानी मुझे बताती है कि कामयाबी के लिए सबसे जरुरी है कंसिसटेंसी. निरंतरता. जो लगा रहेगा, वो ही जीतेगा.
अब एक सच्ची कहानी. मेरी गली के एक पंडित जी दसवीं की परीक्षा में पांच बार फेल हो चुके थे.
छठी बार परीक्षा दी और जिस दिन रिजल्ट आने वाला था, गली के मंदिर में शिवलिंग पकड़कर बैठ गए.
बोले, 'जब तक पास नहीं कराओगे तुम्हे छोड़ूंगा नहीं'.
अब ये मत पूछिए रिजल्ट क्या हुआ. जय शिव.
Very inspiring and motivating story. Reader is always thinking that what is going to happen in the story. Very consistent story. Excellent..
जवाब देंहटाएंVery inspiring and motivating story. Reader is always thinking that what is going to happen in the story. Very consistent story. Excellent..
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