शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

तुझमें रब दिखता है...

ये अक्खा इंडिया कहता है


कुछ ऐसा ही हुआ होगा. कृष्ण ने जब गोवर्धन उठाया होगा. अकेले. अपनी सबसे छोटी उंगली पर और जिसने वो दृश्य देखा होगा, वो उन्हें 'भगवान' ना कहता तो क्या कहता ? 


फिर, हमारा कुसूर क्या ? हम भी गवाह हैं, 22 अप्रैल 1998 की उस अद्भुत रात के, जब शारजाह क्रिकेट एसोसिएशन के उस स्टेडियम को रेतीला तूफान उड़ा लेने की ज़िद दिखा रहा था. रेत के अंधड़ के बीच हर कोई छुपने की जगह तलाश रहा था. क्रिकेट का रोमांच धूल भरी तूफ़ानी आंधी में कहां उड़ गया था, पता ही नहीं चला. छुपते, भागते और हांफते लोगों की जमात के बीच सिर्फ एक शख्स था, जो हाथ में बल्ला थामे ऐसे डटकर खड़ा था मानो उसी बल्ले के ज़ोर से तूफ़ान को शारजाह की बाउंड्री के बाहर खदेड़ देगा. ये हौसला 24 बरस की उसकी उम्र, 5 फुट 5 इंच के कद और औसत काठी के मुक़ाबले कहीं बड़ा था. उसका असल कद तो रेतीली हवा का गुबार थमने के बाद दिखा. ऑस्ट्रेलिया की महापराक्रमी टीम के खिलाफ़ उसने वैसे ही बल्ला चलाया, जैसे कृष्ण का सुदर्शन घूमता था. विरोधी गेंदबाज हांफने लगे और भारतीय समर्थक नाचने लगे.

कलियुग में क्रिकेट को धर्म मानने वाले भक्तों ने उसी रात सचिन तेंदुलकर नाम के उस शख्स को भगवान का दर्जा दे दिया. मैं भी ऐसे ही भक्तों में शामिल हूं. इस पोस्ट को पढ़ने वाले लोगों में से अगर कुछ ऐसे हैं, जिन्होंने उस मैच महान मैच को लाइव नहीं देखा, तो मैं बता देता हूं कि स्कोर बोर्ड आपको कभी उस रोमांच की जानकारी नहीं दे सकता जो हमने महसूस किया. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वो मैच भारत के लिए सेमीफाइनल सरीखा था. जीत के लिए 285 और फ़ाइनल में पहुंचने के लिए 254 रन चाहिए थे. सौरव, मोंगिया, अजहर, जडेजा सारे बल्लेबाज नाकाम हो गए, लेकिन, अकेले सचिन ने ऑस्ट्रेलिया को घुटने पर ला दिया. अगर अंपायर ने गलत डिसीजन ना दिया होता तो सचिन ने मैच भी जीत लिया होता. 143 रन की पारी के साथ फ़ाइनल का टिकट तो वो न्यूज़ीलैंड से छीन ही लाए. दो दिन बाद अपने जन्मदिन के रोज़ सचिन ने एक और शतक जमाया और ऑस्ट्रेलिया का ट्रॉफी जीतने का ख्वाब तोड़ दिया.
इस मैच के करीब नौ साल पहले पाकिस्तान के पेशावर में भारत और पाकिस्तान के बीच बीस ओवरों का नुमाइशी मैच खेला जा रहा था. सचिन की उम्र तब 16 साल थी. वोे क्रीज पर आए तो भारत को पांच ओवर में सत्तर रन बनाने थे. सचिन ने मुश्ताक अहमद को निशाने पर लिया. ओवर खत्म हुआ तो महान लेग स्पिनर अब्दुल क़ादिर बच्चे से दिखते सचिन सामने खड़े थे. क़ादिर ने पूरे गुरुर में कहा,'बच्चे को क्यों मार रहे हो? हमें मार के दिखाओ?' कादिर को कतई पता नहीं था कि उन्होंने सांड़ को लाल कपड़ा दिखा दिया है. ओवर की पहली गेंद हवा में उड़ते हुए बांउड्री के बाहर. तीसरी गेंद पर चौका और आखिरी तीन गेंदों पर लगातार तीन छक्के. छह गेंदों में 28 रन देने वाले क़ादिर उस ओवर के बाद ऐसे गुम हुए कि फिर सचिन के सामने कभी नहीं दिखे. 



सचिन ने अपने बल्ले से क्रिकेट मैदान पर पराक्रम की जो कहानी लिखी, उसमें एक क़ादिर का ही गुमान नहीं उतरा, उन्हें गेंदबाजी करने वाला हर बॉलर सजदा करते हुए ही गया. सचिन ने इस करिश्मे की शुरुआत उस वक्त की जबकि ब्रायन लारा ने इंटरनेशनल क्रिकेट में एंट्री नहीं ली थी. वीरेंद्र सहवाग की उम्र 11 साल थी और वो बल्ला पकड़ना सीख रहे थे. विराट कोहली सिर्फ एक बरस के थे और घुटनों पर चल रहे थे.
सचिन ने हिंदुस्तान के लिए कितने मैच जीते, मैं इसकी गिनती भी बता सकता हूं, लेकिन वो आंकड़े सचिन के उस सम्मोहन की कहानी बयान नहीं कर सकते, जिसने हिंदुस्तान और पूरी दुनिया को चौबीस साल तक जकड़े रखा. इनमें से करीब डेढ़ दशक ऐसा था, जबकि सचिन की क्रीज पर मौजूदगी ही भारतीय टीम की जीत की गारंटी थी. सचिन खेलते तो स्टेडियम फुल हो जाते. सड़कें सूनी हो जातीं. वो शतक के करीब होते तो ट्रेन तक रुक जातीं. उनके आउट होते ही स्टेडियम खाली हो जाते. टीवी सेट बंद हो जाते. क्रिकेटर सचिन, हिंदुस्तानियों के लिए ऐसी उम्मीद थे, जो उन्हें जीतने का हौसला देती.

क्या आप 24 फरवरी 2010 का वो मैच भूल सकते हैं, जब ग्वालियर में सचिन वनडे क्रिकेट में दो सौ रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज बने. उस दिन ममता बनर्जी ने रेल बजट पेश किया था. हर दिन ट्रेन में सफ़र करने वाले करोड़ों लोगों से जुड़ी ख़बर सचिन के दोहरे शतक के जश्न में ऐसे छुप गई, जैसे सूरज निकलने के बाद चांद छुप जाता है.
 हिंदुस्तान में सचिन नाम के जलवे का क्या असर है, सिर्फ महसूस किया जा सकता है. बयान नहीं. 40 साल की उम्र में भारत रत्न होना, इसी जलवे की निशानी है. सचिन आज बयालीस साल के हो गए हैं, लेकिन, ये सिर्फ वो उम्र है जो उनके जन्म से जोड़ी जाती है. उनका जलवा तो सदियों के पार निकल चुका है. कौन जाने इस दुनिया के भी पार...कृष्ण के गोलोक धाम तक.. या फिर विष्णु के क्षीर सागर तक... सुनते हैं, मोदी जी ने कैलाश का नया रास्ता खुलवा दिया है, वहां जाके तो परख हो ही सकती है. क्या पता महादेव के सिंहासन के नीचे कोई शोेएब अख्तर पर अपरकट जड़कर छक्का मारते सचिन का पोस्टर लगा आया हो. चलिए, देख के आएं?



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