... तो बजाओ ताली
आप तो जानते हैं. अंग्रेजी में उसे 'एब्रीविएशन' कहते हैं. आम बोलचाल में शॉर्टफॉर्म भी कह देते हैं. छोटे- छोटे बच्चों के मां-बाप की खुशी भी आपको याद होगी. उस वक्त जब किसी गेस्ट के सामने उनका बच्चा शॉर्टफॉर्म की फुलफॉर्म करता है.
मां कहती है, 'बेटा, आईएएस की फुलफॉर्म बताओ'.
बच्चा जवाब देता है, 'इंडियन एडमिनस्ट्रेटिव सर्विस.'
मां के चेहरे पर मुस्कान. दूसरा सवाल आता है.
'बेटा, अब सीबीआई बताओ.'
बच्चा कहता है, 'सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन.'
मां का चेहरा खुशी से लाल. अब सबसे मुश्किल सवाल.
'अच्छा, बीसीसीआई की फुलफॉर्म क्या है'?
बच्चा छत की तरफ देखता है. आंखे मिचमिचाता है. इस बार मुस्कुराने की बारी गेस्ट की होती है. मां के चेहरे पर हवाई सी उड़ रह है.
डैडी बोल पड़ते हैं, 'अरे छोड़ो भी. तुमने तो घर पर ही स्कूल खोल दिया.'
खतरा बच्चे के नहीं डैडी के फेल होने का है.
मां अब भी हिम्मत नहीं हारती.
'क्या राहुल, मेरा अच्छा बेटा, भूल गया. थोड़ी देर पहले ही तो सुना रहा था.'
डैडी फिर कहते हैं, 'तुम भी... कमाल करती हो.'
इतने में बच्चे का मुंह खुलता है. सौ की स्पीड से बोलने वाला बच्चा राहुल दस की स्पीड से शुरुआत करता है.
'बोर्ड... बोर्ड ऑफ कंट्रोल... बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट...'
आखिरी दो शब्दों में रफ्तार बढ़ जाती है.
'.. इन इंडिया. बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर... क्रिकेट इन इंडिया...'
मां कुर्सी छोड़कर खड़ी हो जाती है. ताली बजाने लगती है. घर आए अतिथि महोदय भी शर्मा- शर्मी में एक- दो बार दोनों हाथों की हथेली मिला देते हैं. फुसफुसाते हुए कहते हैं, 'शाबास'.
मां उनके रिएक्शन को नहीं देखती. उसे देखने की फुर्सत भी नहीं. वो अपनी धुन में रहती है. अपनी सुनाए जाती है.
'बताइये भाई साहब. सिर्फ चार साल का है. कोई और बच्चा बता देगा. आप बताइये.'
गेस्ट कुछ कहते उसके पहले ही मां का जोश बढ़ जाता है.
'ये तो कुछ नहीं. आप कुछ भी पूछिए. यूएसए पूछिए. यूएसएसआर पूछिए. पूछिए. पूछकर देखिए. ये सब बता देगा.'
पहले बच्चा बालों में उंगलिया डाले सिर खुजला रहा था. अब यही काम गेस्ट महोदय करते हैं.
मन ही मन सोचते हैं... 'पहले बच्चे को रट्टू तोता बनाते हो, फिर हमारे सामने रौब जमाते हो. कहां फंस गए.'
कुछ देर सोच विचार के कहते हैं, 'जी ... जी... बड़ा होनहार बच्चा है... आईएएस ही बनेगा...'
अपनी इस भविष्यवाणी पर मन ही मन बड़ा सा क्वैश्चनमार्क भी लगा लेते हैं.
ये सीन 1980 के दशक का है. तब यूएसएसआर के टुकड़े नहीं हुए थे. बच्चों के पास प्लेस्टेशन नहीं थे और दूसरों पर रौब गांठने के लिए ऐसा ही कुछ किया जाता था. बच्चा गेस्ट के सामने ऐसा इम्तिहान देता था जिसका रिजल्ट उसे नहीं बल्कि उसके मां-बाप को मिलता था.
अब आईएएस तो गिनती के बनते हैं साल में. कितने बनते. पता नहीं किसी गेस्ट ने सोचा क्यों नहीं. बच्चा नेता भी बन सकता है. 1980 के दशक के उन बच्चों के मां-बाप की सोच और सवाल शायद अब तक नहीं बदले हैं. उन बच्चों के मां-बाप के हमउम्र नेता इन दिनों जिस अंदाज में लोगों से सवाल पूछते हैं, उससे यही लगता है.
एक नेताजी पूछते हैं, 'जेडीयू मतलब'? जवाब भी खुद देते हैं, 'जनता का दमन उत्पीड़न.' 'आरजेडी का फुलफॉर्म'? 'रोज जंगल राज का डर'.
दूसरे नेताजी भी पीछे नहीं. वो पूछते हैं, 'बीजेपी मतलब'... फिर जवाब देते हैं, 'बड़का झुट्ठा पार्टी'.
तो बजाइये ताली. कहिए शाबास. अगर आप खुद को 1980 के उस दशक से जोड़ पाते हैं तो मुस्कुराइए. इस दौर का जमकर मजा लीजिए. इस बार 'तमाशा' आप नहीं. तमाशा बुजुर्गों की फौज कर रही है और आपका जिम्मा ताली बजाकर मजा लेने का है. हां, आपके पास एक ऑप्शन भी है. बोर हो जाएं तो चैनल बदल सकते हैं. मुझे यकीन है कि ये तमाशा देखने आप किसी रैली में तो नहीं ही जाएंगे.
Bahut khoob bachpan ki yaad dila di..shabdon ka sahi chayan... Utkrishta lekh .
जवाब देंहटाएंshukriya
जवाब देंहटाएंशब्दों के जबरदस्त अंदाज।।
जवाब देंहटाएंवाह ताज नहीं वाह रायशुमारी बोलिये :)