रविवार, 17 अप्रैल 2016

दिल से जो मांगोगे दे देगी यमुना



नाव के बीचो- बीच बैठी जिस छोटी सी बच्ची की तस्वीर आप देख रहे हैं वो सिर्फ तीन बरस की है. 

नाम है सुरभि. 

उसकी सूरत जितनी प्यारी है, वो बातें भी उतनी ही अच्छी करती है. 

पढना सीख ही रही है. एबीसीडी... अ आ इ ई, 1,2,3,4 

उसने हाथ में जो तख्ती थाम रखी है, उस पर क्या लिखा है, पढ़ना उसके लिए मुश्किल है. 

लेकिन, उसने दूसरे बच्चों से पूछ लिया था कि तख्ती पर लिखा क्या है, और उसने बहुत सोच-समझकर इस तख्ती को थामा है. 

चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यमुना षष्ठी के तौर पर मनाया जाता है. 

मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य की पुत्री यमुना का जन्म हुआ था. 


जी हां, भारतीय तहजीब की प्रतीक नदी यमुना. हिंदुओं के लिए ये नदी श्रीकृष्ण की पटरानी होने के कारण पूज्य है. यमराज की बहन होने की वजह से इसका रुतबा थोड़ा और बढ़ जाता है. 

मुसलमानों को भी यमुना प्यारी है. 

जिस गंगा-जमुनी तहजीब की बात होती है, उसमें शायद यमुना को मुसलमानों के खाते में ही रखा जाता है. 

सुरभि को यमुना किनारे जाना, नाव से नदी पार करना बहुत पसंद है.

लेकिन, इसका मौका बेहद कम मिलता है. 

यमुना जब से मैली हुई, ब्रज क्षेत्र के स्थानीय लोगों में से कई ने नित्य स्नान और आचमन का क्रम छोड़ दिया. 

अब यमुना दर्शन तीज-त्यौहारों पर ही होते हैं. 

ऐसे में कृष्ण की कहानियों के साथ यमुना की लहरों पर तैरते-उतरते आज की पीढ़ी के बच्चे तरसे-तरसे रह जाते हैं. 

यमुना छठ के मौके पर सामाजिक संगठन 'युगांधर' ने फ़ैसला लिया कि वो बच्चों को यमुना दर्शन भी कराएगा और उनके जरिए यमुना सफाई की कसम उठाने वालों को उनके वादे याद कराएगा. 

मकसद दो थे. 

पहला ये कि छोटे बच्चे समाज में नदी की उपयोगिता को समझें और ये भी जानें कि अगर नदियां ऐसे ही गंदी होती रहीं तो आने वाली पीढ़ियों को विरासत में नदियां सिर्फ कहानियों में ही मिलेंगी. 

दूसरा ये कि तख्तियां थामे दूसरों को संदेश देने वाले बच्चों के दिमाग की स्लेट पर अगर ये बातें लिख गईं तो वो यमुना की सफाई में कोई सक्रिय योगदान दें या नहीं, लेकिन शायद अपने स्तर पर इसे और अधिक गंदा करने से बचेंगे. 

1970 और 80 के दशक में पैदा हुए बच्चों ने यमुना की कहीं बेहतर तस्वीर देखी थी. 

मथुरा में ही हर दिन छोटे-छोटे बच्चे सुबह- सुबह यमुना स्नान करने या फिर तैरने जाते थे. 

शाम को कछुओं के लिए आटे की गोलियां लिए घाटों पर जाते थे. 

लौटते वक्त यमुना जल भर लाते थे. 

इस पीढ़ी के जवान होते-होते यमुना इतनी बदल गई कि स्नान और पीना तो दूर लोग आचमन से भी बचने लगे. गंदगी ने यमुना को नई पीढ़ी से दूर कर दिया. 


आज यमुना के नाम पर शंख फूंकने वाले तो कई हैं लेकिन उसके दामन पर बढ़ते जा रहे गंदगी के पैबंदों के खिलाफ महाभारत करने वाला कोई नहीं. 

दुनिया बदलने की शुरुआत खुद को बदलने से की जाए तो अच्छा. 

बच्चों को यमुना छठ के मौके पर घाट और यमुना की गोद तक लाने का मकसद यही था. 

'युगांधर' ने नारे लिखने और तख्तियां तैयार करने का काम भी बच्चों के जिम्मे सौंपा. 

यकीन मानिए हर बच्चा बहुत उत्साह में था. 

लिखते वक्त बच्चे नारे जोर-जोर से बोलते रहे. 

कंप्यूटर से प्रिंट निकाला 

कागज के बराबर साइज का गत्ता काटा 

गोंद लेकर उसे चिपकाया और अपने-अपने हिस्से की तख्तियां सब बच्चों ने थाम लीं. 

जिस वक्त तख्तियों का बंटवारा हो रहा था. सुरभि ने डिमांड की, उसे "श्री यमुना की सफाई तक नहीं थमेंगे,नहीं झुकेंगे, नहीं रुकेंगे" लिखी तख्ती चाहिए. 

हर प्यारे बच्चे की तरह सुरभि भी थोड़ी जिद्दी है. 

नहीं थमेंगे, नहीं झुकेंगे वाला जज्बा जो ऐसे बच्चों में अक्सर दिखता है, उसमें भी है. शायद यही वजह रही होगी कि उसने ये तख्ती चुनी. 
सुरभि के सलेक्शन ने गांधीवादी चिंतक और पर्यावरणविद अनुपम मिश्र जी की कही बात याद दिला दी. 

कुछ बरस पहले 'युगांधर' सदस्य अनुपम जी से मिलने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान पहुंचे. 

पानी पर युगांतकारी काम का अनुभव रखने वाले अनुपम जी ने बहुत सी बातें बताईं. 

आखिर में कहा, 'यमुना से जिसने जो मांगा, उसे मिला. पैसा मांगा, मिला. नाम मांगा, मिला. दिल से उसकी सफाई मांगोगे वो भी मिलेगा'. 

'मांग के तो देखो'. 

अब तक सफाई के नाम पर 'ढपोरशंखों' को देखते रहने के बाद भी सुरभि के तेवर देखकर लगता है कि उसकी पीढ़ी यमुना से सफाई मांग लेगी. 

अनुपम जी की बातें याद करते हुए कहूं तो ये जरुरी भी है. 

अनुपम जी ने ये भी कहा था, 'ये मत भूलो यमुना यमराज की बहन है. अभी शिकायत भाई तक नहीं पहुंची है. सोचो अगर उसने कभी फरियाद कर दी तो बहन के लिए यमराज क्या कुछ नहीं कर सकते?' 

डरिए मत, सुरभि जैसे बच्चों पर भरोसा रखिए. (राकेश शर्मा, युगांधर के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उनसे युगांधर के फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर संपर्क किया जा सकता है.)

7 टिप्‍पणियां:

  1. A genuine effort of making the whole world understand how important it was to keep our traditions alive.Appreciations for writing such a thoughtful writeup let us hope and pray that the whole world will realise the fact that if we want to save our future we have overrun mind of our coming generations about our heritage and moreover how to preserve it. Thanks to Ugandans for starting a step forward......

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  2. Reference your article on river Yamuna...... Thanks for illustrating the woes of Yamuna in a crisp,lucid,intelligible and soul stirring manner.Hope this article creates chain reaction among sensitive Indians to share these views with like-minded companions and among unaware Indians to create awareness about their valued legacy. It is good if one knows about Yamuna but it will be wonderful if one realize the importance of Yamuna and take active part in creating an awareness campaign about it...... Kudos Vatsalya RAI & Team and YUGANDHAR for their selfless endeavor......... May Lord Krishna bless your Good intentions......Amresh Kumar,Pune

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  3. A rising hope to the young generation.At least somewhere down the lane 'YUGANDHAR'is there to make people
    alert & aware about our heritage .It is the tale of persona who has his birth in 70's& teens in 80's to give the trumpet to us- the "millennium " born children and we the 21st century children are ready to take the baton to make our rivers pollution free & save sufficient water for us & future generations to come.It is high time for us as our country is facing acute water crisis to conserve water by managing rivers. Thanks and appreciation to you dear writer........
    Amartya,Class -x
    Pune

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