जनाब, किसे खोज रहे हैं आप?
ग़ाजियाबाद जाइये या फिर गांधीनगर. कानपुर या फिर पटना. मन हो तो बुंदेलखंड का चक्कर भी लगा लीजिए. दीवारें पटी हुई हैं. जगह-जगह पोस्टर लग गए हैं. जिनका सबको पता है, वो 'लापता' बताए जा रहे हैं.
भला कौन मानेगा कि जनरल (रिटा.) वीके सिंह गुम हो गए हैं. ट्विटर ट्रेंड से लेकर प्राइम टाइम की बहस तक वो हर जगह छाए हुए हैं.
लेकिन,ग़ाजियाबाद में दाखिल होते ही आपका भरम टूट सकता है. यहां बाकायदा पोस्टर लगाकर सिंह साहब की तलाश की जा रही है. 'भारतीय कौटिल्य सेना' नाम के संगठन ने उनकी तलाश पर पांच सौ रुपये के इनाम का भी एलान किया है.
किस्सा सिर्फ़ यूपी के जिला ग़ाजियाबाद का नहीं. गुजरात के गांधीनगर में भी पोस्टर लगाकर तलाश की जा रही है. यहां बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी को 'गुमशुदा' बताया गया है. अब आप कहेंगे, भला आडवाणी जी कैसे लापता हो सकते हैं. उनकी तो 'चुप्पी' भी हाल-हाल तक ख़बर रही है.
आडवाणी की ही तरह बीजेपी के 'मार्गदर्शक' मुरली मनोहर जोशी भी 'लापता' हो गए हैं. उनकी तलाश में कानपुर में पोस्टर लगे हैं.
पटना में लगे एक पोस्टर में बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा को 'गुमशुदा बताया गया है'. दूसरों को 'खामोश' कर देने वाले शॉटगन की 'चुप्पी' पर सवाल उठाया गया है. पोस्टर में पुरस्कार देने की बात भी कही गई है, लेकिन, कौन किसे देगा, ये साफ़ नहीं है.
पोस्टर लगाकर तलाश राहुल गांधी की भी हो रही है. हालांकि, अब बताया जा रहा है कि वो दिल्ली आ गए हैं या बस आने ही वाले हैं. वैसे, कांग्रेस कई बार साफ़ कर चुकी है कि राहुल गांधी 'गायब' नहीं बल्कि 'छुट्टी' पर हैं, लेकिन, विरोधियों की नज़र में वो 'गुमशुदा' ही हैं
दिलचस्प ये है कि बुंदेलखंड क्षेत्र में राहुल गांधी के साथ बीजेपी नेता उमा भारती की भी तलाश हो रही है. वो भी पोस्टर चिपका के. एक तरफ़ उमा दीदी. दूसरी तरफ़ राहुल भैया.
कुछ महीने पहले ऐसा ही 'तलाश' अभियान नई दिल्ली क्षेत्र में भी चला था. पोस्टर छपे थे. दीवार पर लगे थे. यहां अरविंद केजरीवाल को गुमशुदा बताया गया था. दिल्ली चुनाव ने केजरीवाल को तलाश कर नई दिल्ली पहुंचा दिया और लोगों ने इनाम भी दिया, लेकिन, किसे ? जाहिर है, केजरीवाल को.
तो बलिहारी है, ऐसे तलाशी अभियान की. जिनका पता है आप उन्हें ही लापता बताकर तलाश रहे हो और जब वो आपकी परिभाषा के मुताबिक मिल जाते हैं तो उन्हें ही इनाम थमा देते हो. ये ऐसा मज़ाक है, जिस पर अब हंसी भी नहीं आती. सब जानते हैं कि ऐसे पोस्टर छपवाने वाले पब्लिसिटी के लिए चर्चित चेहरों को खोज रहे हैं. कई बार शिकायतें जायज भी होती हैं. चुनावी मौसम में वादों के बीज बोने वालों से फ़सल का हिसाब मांगना वोटर अपना हक़ मानते हैं और जब ये हक़ हाथ से जाता दिखता है तो वो पोस्टर चिपकाने के सिवा कर भी क्या सकते हैं ? शायद इसीलिए 'राइट टू रिकॉल' की मांग उठी थी. लेकिन, पोेस्टरों के जरिए तलाशी अभियान चलाने वाले सीरियस कभी नहीं दिखते. अगर होते तो कथित 'गुमशदा' खुद प्रकट होने के लिए मजबूर हो जाएं.
सच कहा जाए तो सीरियस होकर खोज़ने की जरुरत इन बड़े नाम वाले लापता लोगों को नहीं. इससे किसी का भला होता हो, ये लगता नहीं. तलाशी अभियान की जरुरत उन लापता बच्चों को है, जो वक्त के किस अंधेरे में गुम हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता. इन बच्चों का पता ना उनके घरवाले लगा पाते हैं और ना ही शुभचिंतक. पुलिस तो खैर सीरियस होती ही नहीं. नेशनल क्राइम ब्यूरो का आंकड़ा मुझे बताया गया है, जिसके मुताबिक हर आठ मिनट में एक मासूम 'गायब' हो जाता है. यानी हर घंटे करीब आठ बच्चे लापता हो जाते हैं. इनमें लड़कियों की तादात आधे से ज्यादा होती है. गुमशुदा बच्चों में से चालीस फ़ीसदी कभी लौट कर घर नहीं आते. पिछले साल अकेले दिल्ली में 7 हज़ार से ज्यादा बच्चे गायब हुए थे. मासूम बच्चों के इस तरह गुम होने पर सुप्रीम कोर्ट तक चिंता जाहिर कर चुका है.
तो पोस्टर छाप कर बड़े- बड़े लोगों को तलाशने वाले भाइयो (अगर बहनें भी इस अभियान में शामिल हैं तो मेरा संबोधन उन्हें भी है) कृपया अपना धन और समय इन स्वनामधन्य लोगों पर व्यर्थ ना करें. ये वक्त पड़ने पर खुद प्रकट हो जाएंगे. इन्हें जो 'इनाम' देना है, सामने आने पर दें. पोस्टर छापें, चिपकाएं और तलाशी अभियान चलाएं तो किसी ऐसे मासूम के लिए जिसके लौटने पर एक परिवार की खुशियां लौटेंगी. आपको दुआएं और ताउम्र के लिए सुकून मिलेगा. आइये मिलकर खोजते हैं उन मासूमों को जो ना जाने किन अंधेरों में गुम हो जाते हैं.
दिलचस्प तलाश (⊙﹏⊙)
जवाब देंहटाएंNice Story
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, निलेश, कृष्ण मुरारी जी
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