'बिहार' जहां राजनीति है 'एंटरटेनमेंट'!
'क्यों जी, चूहा मार कर खाना कोई खराब बात है क्या ?'
पत्रकार मुख्यमंत्री को घेरने आए थे. सवाल पूछा. जवाब में सीएम ने भी सवाल दाग दिया. वो इतने पर ही नहीं रुके. कहानी को आगे बढ़ाया.'बहुत लोग चूहा खाते हैं. हम भी चूहा खाते थे. आज भी खाते हैं.'
देखने वाले सन्न. सुनने वाले सुन्न, लेकिन सुनाने वाले के चेहरे पर क्लोजअप मार्का चौड़ी मुस्कान. बताने की जरुरत नहीं. सब जानते हैं. ये बयान जीतनराम मांझी का है, जो उन्होंने मुख्यमंत्री रहते दिया. ऐसा अंदाज़, ऐसी साफ़गोई राजनीति में कहां दिख सकती है? आप नहीं जानते तो जान लीजिए, वो सिर्फ और सिर्फ एक ही जगह है, बिहार.
बुद्ध की भूमि. बुद्धिकौशल में सबसे आगे. चाणक्य की जिस नीति पर पूरी दुनिया कुर्बान है, बिहार की मिट्टी के कण-कण में वो दर्शन बसा है. बात दुनिया की हो, या फिर हिंदुस्तान के दूसरे हिस्सों की, नेताओं को राजनीति के दांव- पेंच सीखने में उम्र खपानी पड़ती है, लेकिन, यहां, बिहार में बच्चा ज़मीन पर कदम बाद में रखता है, राजनीति में पारंगत पहले हो जाता है.
और, अगर आप ये माने बैठे हैं कि जीतनराम मांझी ने ये बयान नासमझी में दिया, तो आप बड़ी भूल कर रहे हैं. मांझी खूब जानते थे कि वो क्या कह रहे हैं. वो ये भी जानते थे कि उनकी कही बात दूर तलक पहुंचेगी. वो ये ही तो चाहते थे. किसी को हंसाने और किसी को उबकाई लाने वाले एक बयान भर से मांझी बिहार में कथित तौर पर महादलितों के सबसे बड़े नेता हो गए.
अगर आप राजनीति को एक सीरियस बिज़नेस समझते हैं, तो मान लीजिए कि आपके फ़ेल होने के चांस बढ़ रहे हैं. 20 वीं सदी के अंतिम और 21 वीं सदी के अब तक के डेढ़ दशकों में बिहार के नेताओं ने बार-बार बताया है कि वोटरों को एंटरटेन करना राजनीति में कद बढ़ाने और कुर्सी पर बने रहने की गारंटी देता है. ऐसा ना होता तो मांझी को कुर्सी से हटाने में बिहार के आधुनिक मसीहा नीतीश कुमार के पसीने ना छूट गए होते और जब-जब नीतीश पसीना पोंछते मांझी उन्हें हंसी-हंसी में एक और चोट दे देते.
मसलन जब नीतीश गुट की ओर से मांझी पर इस्तीफे का दबाव पड़ा तो उन्होंने कहा, ''नीतीश कुमार ने ग़लती नहीं की. महाग़लती की. उन्होंने ये समझने में गलती कि हमारे हाथ का कठपुतला बनेगा.''
दिलचस्प अंदाज में एंटरटेनमेंट करते हुए अगर मांझी ने अपना राजनीतिक कद इतना बढ़ाया ना होता तो क्या बीजेपी और नरेंद्र मोदी उन पर लट्टू दिखते?
हंसी को हथियार बनाकर बिहार की सियासत में झंडे लहराने का कमाल करने वाले मांझी इकलौते नेता नहीं. लालू प्रसाद यादव ने तो महज एंटरटेनमेंट के जरिए ही बिहार पर 15 साल राज किया. बिहार की ज़मीन को कर्मभूमि बनाने के बाद शरद यादव भी शायद यही मानने लगे कि वोट तो तभी मिलेगा, जबकि वोटर हंसेगा. नतीजा ये है कि शरद सीरियस मामलों को भी एंटरटेनिंग बनाने की कोशिश में आए दिन विवाद खड़ा कर देते हैं. कभी वो महिला संगठनों के निशाने पर होते हैं तो कभी सामाजिक संगठनों के, लेकिन, इससे उनके राजनीतिक कद पर असर नही होता.
अगर आप नीतीश कुमार को 'गंभीर' छवि में कैद देखते हैं तो ये आप का भरम भर है. वो देवेन वर्मा की तरह सीरियस दिखते हुए ही कॉमेडी कर जाते है़. अब बताइये, लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल को जंगल राज बताकर बिहार में कामयाबी के झंडे लहराने वाले नीतीश आज उनके हाथ में हाथ डाले दिख रहे हैं तो क्या ये मजाक नहीं?
लेकिन, फिक्र क्या ? बिहार के मेधा महारथी तो राजनीति के 'मसखरेपन' पर ही फिदा हैं. उनके लिए तो शायद राजनीति का मतलब ही एंटरटेनमेंट हो चुका है. लोकसभा चुनाव में घोटालों की एबीसीडी पढ़ाते हुए नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा एंटरटेन किया तो बिहार की ज़मीन पर कमल खिल गया. अब इंतज़ार विधानसभा चुनाव का है. वहां जो जितना ज्यादा एंटरटेन करेगा, वो उतनी ही ज्यादा सीट पाएगा.
नौटंकी का पर्दाफाश । ये तो आपने हम राज्यवासियो के मन
जवाब देंहटाएंके उद्गार को ही व्यक्त कर दिया । धन्यवाद
नौटंकी का पर्दाफाश । ये तो आपने हम राज्यवासियो के मन
जवाब देंहटाएंके उद्गार को ही व्यक्त कर दिया । धन्यवाद
शुक्रिया भाई
जवाब देंहटाएंबचपन में मेरे गाँव में 5 - 6 तगड़े कुत्ते थे। उन की
जवाब देंहटाएंआपस में ज़बरदस्त दुश्मनी थी। सब एक दूसरे के
खून के प्यासे। लेकिन जब कई सालों बाद मैं
गांव गया तो देखा वो कुत्ते एक दूसरे को
चाट रहे थे, साथ में अठखेलियां कर रहे थे।
एक बुजुर्ग से जब इस बारे में बात की तो बुजुर्ग
ने बड़ा ही मज़ेदार ज़वाब दिया। उन्होंने
कहा, "गली के कुते, जवानी के दिनों में भले
ही एक दूसरे के कट्टर शत्रु हों, किन्तु बुढ़ापे में
दाद - खुजली से ग्रस्त बेदम और बेकार होते
ही वे दोस्त बनकर एक दूसरे के सारे ज़ख्म
चाटने लगते हैं।"
नोट: इस कहानी का लालू, नितीश,
मुलायम, शरद यादव या देवगौड़ा आदि से
कोई संबंध नही है ! ;)