सोमवार, 13 अप्रैल 2015

पकड़िए इस आग के सुर...

जब वो गाते हैं गेंदबाज रो जाते हैं 


चलिए मोहाली से शुरु करते हैं. ऐसा शोर शराबा मानो कयामत आने वाली हो. मुक़ाबला था वर्ल्ड कप सेमीफ़ाइनल. आमने-सामने थे भारत और पाकिस्तान. इसे भारत के बल्लेबाज़ों और पाकिस्तान के गेंदबाजों की टक्कर बताया जा रहा था. पाकिस्तान को सबसे ज्यादा गुमान उमर गुल पर था. उन दिनों उमर गुल गेंदबाजी नहीं करते थे, आग उगलते थे, लेकिन हर ऊंट एक दिन पहाड़ के नीचे आता है. 


                                       
    30 मार्च 2011 गुल के लिए ऐसी ही तारीख थी. उनकी आग का मुक़ाबला एक ज्वालामुखी से हो गया. नाम आप जानते हैं, वीरेंद्र सहवाग. मैच का तीसरा ओवर था, लेग स्टंप पर हॉफ़वॉली. पलक झपकते ही गेंद बाउंड्री के बाहर. बल्ला ऐसे शास्त्रीय अंदाज़ में घूमा कि कोई भी मुरीद हो जाए. अगली गेंद भी उसी दिशा से बाउंड्री की ओर लपकी और सारे फील्डरों को हराते हुए बाहर निकल गई. तीसरी गेंद को सहवाग ने सम्मान दिया. मानो अलाप के बाद गले को आराम दे रहे हों. चौथी गेंद स्क्वैयर लैग और पांचवी प्वाइंट बाउंड्री से बाहर गई. छठी गेंद ने एक्सट्रा कवर बाउंड्री का रुख किया. छह गेंद में पांच चौके. स्टेडियम में मौजूद दर्शक ऐसे झूमने लगे मानो मैच देखने नहीं बल्कि किसी रॉक कंसर्ट में आए हों. 

                                 
     100 ओवरों के मैच में एक ओवर का खेल ज्यादा मायने नहीं रखता, बशर्ते सहवाग उस मैच में ना हों. सहवाग के लिए तो मैच का रुख तय करने के लिए एक ही ओवर काफी है. वो कुछ उस ड्रमर की तरह हैं, जो किसी म्यूजिकल शो में अपनी स्टिक के शुरुआती कुछ स्ट्रोक से ही ऐसा समां बांध देता है, जिसका असर आखिर तक बना रहता है. सहवाग का बल्ला भी तो गेंद पर किसी स्टिक की ही तरह बरसता है. बल्ला जब गेंद पर चोट करता है तो गेंदबाज भले आह-आह करते हों, देखने वाले तो वाह-वाह ही करते हैं. 

                                       
    बात निकली है तो बता दें, सुरीला सर्फ वीरेंद्र सहवाग का बल्ला ही नहीं है. वो ख़ुद भी सुर साधते हैं. कहीं भी. कभी भी. सहवाग जब पिच पर गार्ड ले रहे होते हैं तो दूसरे छोर पर खड़ा बॉलर सांसें संभाल रहा होता है. उस वक्त, सहवाग ना तो गेंदबाज़ के बारे में सोचते हैं और उसकी गेंद के बारे में. वो तो कोई गाना गुनगुनाते रहते हैं. सहवाग कहते हैं, 'मैं गाना गाता हूं'. जिस पल गेंदबाज के हाथ से गेंद छूटती है, सहवाग गाना बंद कर देते हैं और बल्ला लय पकड़ लेता है. अब आप समझ ही गए होंगे कि सहवाग के बल्ले से निकले 17 हज़ार से ज्यादा इंटरनेशनल रन इतने सुरीले क्यों लगते हैं. 

                                 
      सहवाग के पसंदीदा गायक किशोर कुमार हैं, लेकिन, वो कुछ भी गुनगुना लेते हैं. इन दिनों आईपीएल-8 का थीम सांग सहवाग की ज़ुबान पर चढ़ा है. ' ये है इंडिया का त्यौहार ' मेरे जैसे सहवाग के फैन्स के लिए वाकई ये त्यौहार ही है. सहवाग जब से भारतीय टीम से बाहर हुए हैं, उनकी बल्लेबाजी देखने का मौका त्यौहारों की ही तरह यदाकदा आता है. सहवाग रन कम बनाएं या ज्यादा, उनके पिच पर होने भर की उम्मीद में स्टेडियम भर जाता है. लोग काम छोड़कर टीवी सेट्स से चिपक जाते हैं. उनकी तमाम पारियां करोड़ो नहीं तो लाखों क्रिकेट फैन्स की आंखों में बसी हैं. मुल्तान की 309 रन की पारी. चेन्नई की 319 रन की पारी. इंदौर वनडे में 219 रन की पारी. सहवाग हिंदुस्तानी क्रिकेट फैन्स का गुमान हैं. भारतीय क्रिकेट का आकाश सीके नायडू, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे सितारा बल्लेबाजों के पराक्रम से रौशन है, लेकिन, फैन्स के अहम को जितनी संतुष्टि सहवाग देते हैं, उतना कोई और बल्लेबाज नहीं देता. सहवाग ने टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी ना की होती तो शायद हिंदुस्तान आज भी तीन सौ रनों की पारी को तरस रहा होता. 


सहवाग ये कमाल कर पाए क्योंकि उनके जज़्बे में आग और बल्ले में राग है. मौका है, जी भर के देख लीजिए...36 बरस के सहवाग हमेशा नहीं खेलेंगे. गाइये.. ये है इंडिया का त्यौहार और करिए सहवाग की आतिशी बल्लेबाज़ी का दीदार.  

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