'रिपोर्टर सब बैर पड़े हैं बरबस कहानी बनायो'
नहीं दोस्तो, मैं महाकवि सूरदास होने की कोशिश में नहीं . हो भी नहीं सकता . नाता अपना भी ब्रज से है. कृष्ण भक्ति भी हमें जोड़ती है, लेकिन, बाबा सूरदास की दिव्य दृष्टि कहां मिल सकती है ? होती तो भी गिरिराज सिंह के आंसू नहीं दिखते. दृष्टि अगर दिव्य हो तो कृष्ण के सिवा कुछ दिखता कहां है?
कृष्णकाल में कुछ समय के लिए दिव्य के आसपास वाली दृष्टि संजय को भी मिली थी. संजय, हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के ड्राइवर थे. उस दौर में गाड़ियां नहीं रथ थे और उन्हें चलाने वाले सारथी कहलाते थे. धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे, लेकिन, वो महाभारत युद्ध लाइव देखना चाहते थे. उनके जैविक पिता महर्षि वेदव्यास को जब जानकारी हुई तो उन्होंने धृतराष्ट्र को दिव्य दृष्टि देने की पेशकश की. धृतराष्ट्र में अपनी आंखों से महाभारत देखने का साहस नहीं था. ऐसे में व्यास जी की कृपा संजय पर हुई, जिससे वो महाराज को महायुद्ध का आंखों देखा हाल सुना सकें.
महाभारत की इस कथा से गिरिराज सिंह भी वाकिफ हैं. टीवी पर जब खबर चली कि गिरिराज सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फटकार लगाई और वो फूट-फूटकर रो पड़े तो खबर का खंडन करने के लिए उन्हें सबसे पहले महाभारत के संजय ही याद आए. गिरिराज ने खबर ब्रेक करने वाले रिपोर्टर से पूछा, आप क्या महाभारत के संजय है ? जब प्रधानमंत्री से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई तो प्यार और फटकार का सवाल ही कहां ?'
हालांकि, मोदी सरकार के माननीय राज्यमंत्री इतना जरुर जानते हैं कि आज के दौर में संजय वाली नज़र कैमरे के पास है. तकनीक की प्रगति के दौर में कैमरे के जरिए किसी भी जगह की तस्वीरें दूसरी जगह सीधे देखी और दिखाई जा सकती हैं. मोबाइल जब से वीडियो रिकॉर्डिंग की क्षमता से लैस हुए हैं, तब से गली-गली संजय घूमने लगे हैं. ऐसे ही एक 'संजय' ने कैमरे की दिव्यदृष्टि के दम पर गिरिराज सिंह के लिए वो हालात बना दिए है कि कभी उन्हें खेद जताना पड़ रहा है, कभी कथित फटकार और आंसू बहाने का खंडन करना पड़ रहा है.
एक निजी महफिल में कैमरे ने अगर संजय की भूमिका ना अदा की होती तो गिरिराज सिंह आज भी उतने ही जोश में गरज रहे होते, जैसे कि वो बिहार के सीएम नीतीश कुमार को चुनौती देते वक्त करते हैं, लेकिन, कैमरे में कैद हुए एक छोटे से वीडियो ने उनकी सुर-ताल ही बदल दिए. इस वीडियो में गिरिराज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में अशोभनीय टिप्पणी करते दिखते हैं. विवादित वीडियो में मंत्रिपद की ठसक के साथ समर्थकों के बीच बैठे गिरिराज सिंह सवाल करते हैं, ' अगर राजीव गांधी कोई नाइजीरियन लेडी से ब्याह किए होते, गोरी चमड़ा ना होता तो क्या कांग्रेस पार्टी नेतृत्व स्वीकार करती?'
गिरिराज ऐसी बातें करने वाले अकेले मंत्री नहीं. निजी पलों या फिर चम्मच ब्रिगेड के बीच तमाम नेता मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार कर ही जाते हैं. लेकिन, कहते हैं जो बच गया वो सयाना और जो पकड़ा गया वो... गिरिराज. अगर ये टिप्पणी सोनिया गांधी को लेकर ना होती तो गिरिराज पकड़ में आकर भी ना कुसूर मानते ना खेद जताते. लोकसभा चुनाव के ठीक बाद घर में हुई चोरी और चोरों के सामने आने पर खुली कहानी को लेकर उनकी प्रतिक्रिया से सब वाकिफ हैं. गिरिराज ने मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने की हिदायत देने वाले बयान पर भी कभी खेद जाहिर नहीं किया. दरअसल, उनकी राजनीति का ग्राफ ही ऐसी बयानों के इर्दगिर्द ऊपर गया है. विवादों के घेरे में होने के बाद भी गिरिराज को उनकी पार्टी ने कभी हंटर नहीं दिखाया. कभी हद में रहने को ऐसी सख्ती से नहीं कहा कि वो आग उगलने के पहले संभल जाएं. हर विवाद के बाद पार्टी ने उन्हें पुरस्कृत ही किया. सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें इनाम में मंत्रिपद भी दिया.
लेकिन, क्यों ? गिरिराज पर मोदी की मेहरबानी की दो वजहें हैं. पहली तो ये कि जिस वक्त नीतीश कुमार ने एनडीए में रहते हुए मोदी का विरोध शुरु किया, उस वक्त गिरिराज ही बिहार बीजेपी के ऐसे नेता थे, जो मोदी के समर्थन में नीतीश को आड़े हाथों लेने में जुटे थे. दूसरी वजह है, बिहार के राजनीतिक समीकरण. इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. ये चुनाव मोदी और बीजेपी के लिए अग्निपरीक्षा की तरह हैं. बिहार की एक दबंग जाति का प्रतिनिधित्व करने और विरोधी को उसी की भाषा में जवाब देने की खूबी की वजह से गिरिराज को भाव देना बीजेपी और मोदी के लिए जरुरी भी है और उनकी मजबूरी भी. गिरिराज खुद भी संकेत देते हैं कि बिहार चुनाव तक उनका मंत्रिपद सुरक्षित है.
स्थिति कुछ ऐसी है कि गिरिराज के बयानों की वजह से पार्टी की किरकिरी कितनी भी हो, उन्हें दंड देना तो दूर किनारे भी नहीं किया जा सकता . 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री उन्हें सार्वजनकि तौर पर फटकार भी नहीं सकते. ऐसे में सूत्रों के हवाले से ऐसी खबर का आना कि प्रधानमंत्री ने गिरिराज को फटकारा और वो फूट-फूटकर रोए, सिर्फ ऐसा भरम बनाता है, जिसका मामूली फायदा प्रधानमंत्री को मिल सकता है. लेकिन, ये बात भरम से आगे बढ़े ऐसा बीजेपी और प्रधानमंत्री भी नहीं चाहते होंगे. गिरिराज की यूएसपी उनकी बेबाक बयानी ही है. बिहार चुनाव में बीजेपी को इसकी बहुत जरुरत पड़ने वाली है. अगर चुनाव के पहले उन पर सेंसर लगाया गया तो फायदा विरोधियों को ही होगा. यही वजह है कि फटकार की खबर आते ही गिरिराज को अपना पक्ष रखने की छूट दे दी गई और वो कहने लगे, 'मैं नहीं आंसू बहायो' ताकि पार्टी की शर्म बची रहे और गिरिराज के निरापद होने का भरम...
बरा ही रोचक लेख।।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
हटाएंबरा ही रोचक लेख।।
जवाब देंहटाएं