एक मजाक और एक 'शाप'
बात, बात-बात में शुरु होती है और कहां तक पहुंच जाती है.
आज दो लोगों के बीच का मजाक उनकी मिल्कियत भर नहीं रह गया.
जी हां, अगर ये मजाक सोशल मीडिया पर शुरू हुआ हो तो दसेक लोग मजा लेंगे. सैंकड़ों पैर फंसाएंगे. हज़ारों अपनी राय रखेंगे. लाखों 'हा-हा.. ही ही' करेंगे. या फिर करोड़ों अपनी काबिलियत झाड़ेंगे, इसका फ़ैसला इस बात से होगा कि मज़ाक जिन दो पात्रों के बीच हो रहा है, उनकी हैसियत क्या है.
बैंक बैलेंस के लिहाज से नहीं फॉलोअर और फ्रेंड्स के लिहाज से.
मैं जिस मजाक की बात कर रहा हूं, वो महज दो लाइन का है.
इनमें से एक लाइन क्रिकेट के सबसे बड़े बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने ट्विटर पर पोस्ट की.
दूसरी लाइन मौजूदा टेस्ट टीम के कप्तान विराट कोहली ने सचिन की बात के जवाब में पोस्ट की.
किस्सा दो लोगों के बीच का था, लेकिन इस कहानी में सैंकड़ों लोग धंस गए.
दरअसल, सचिन और विराट के बीच दो लाइन का जो मजाक हुआ, वो बहुतों के लिए चुटकी लेने, अपनी 'भक्ति' जाहिर करने और 'भड़ास' निकालने का जरिया बन गया.
बात सचिन तेंदुलकर ने शुरु की.
खबर गरम है कि विराट कोहली आईपीटीएल (इंटरनेशनल प्रीमियर टेनिस लीग)की यूएई रॉयल्स टीम के कोओनर बन गए हैं. इस टीम के मालिकों में टेनिस के सुपरस्टार रोजर फेडरर शामिल हैं.
तो इसी खबर के बहाने सचिन ने ट्विटर पर चुटकी ली.
सीधा सपाट ट्वीट किया, जिसका हिंदी में मतलब है, 'विराट कोहली, मैं खेलना चाहता हूं'
इसका मतलब ये निकाला जा रहा है कि सचिन, विराट से कह रहे हैं, 'मैं तुम्हारी टीम से खेलना चाहता हूं'.
घंटे भर बाद विराट कोहली का भी जवाब आ गया.
उन्होंने अंग्रेजी में जो लिखा उसका मतलब कुछ यूं है, 'मुझे यकीन नहीं कि इसके लिए जो चाहिए वो आपमें है सचिन पा जी'.
मतलब कि मुझे लगता नहीं कि मेरी टीम से टेनिस खेल पाओ, आप में वो बात है.
फिर क्या था, सचिन भक्त शुरु हो गए.
सचिन ने विराट कोहली को कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उनके चेले विराट को उनकी 'औकात' याद दिलाने लगे.
एक ने कहा, 'विराट कोहली हमारे भगवान से ऐसा कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई'. साथ में पिस्तौल का सिंबल भी लगा दिया. मतलब गुस्सा इतना है कि मिल जाओ तो सीधे 'ठांय'.
एक भाई ने याद दिलाया, 'शाहिद अफरीदी ने वनडे में सैंतीस गेंद में सेंचुरी बनाई थी, तब वो जिस बल्ले से खेले उसे उन्होंने वकार यूनुस से उधार लिया था और वकार ने वो बल्ला सचिन से उधार लिया था'.
मतलब ये समझाने की कोशिश की गई कि सचिन की बात छोड़ो, वो जिस बल्ले को छू भी देते हैं, वो वर्ल्ड रिकॉर्ड बना देता है.
हालांकि कुछ एक विराट कोहली के समर्थन में भी आगे आए. उनमें से एक ने सचिन को धोनी के साथ खेलने की सलाह दी.
महज दो लाइन से शुरु हुई इस कहानी को लेकर अब इतनी लाइनें लिखी जा चुकी हैं कि एक किताब छप सकती है.
किसी का मजाक कईयों के लिए 'मसखरी' और कईयों के लिए 'दिल के दर्द' की वजह बन गया. जय हो सोशल मीडिया.
बात दर्द की हो रही है तो बिग बी यानी अमिताभ बच्चन जी का हाल भी लेते चलें.
सरकार ने हिंदी के उद्धार की फोटो पर नया फ्रेम लगाने की ठानी यानी बत्तीस साल बाद देश में 'विश्व हिंदी सम्मेलन' की मेजबानी का इरादा बनाया तो हिंदी सिनेमा के सबसे कामयाब, सबसे कमाऊ और सबसे लोकप्रिय कलाकार यानी अमिताभ बच्चन जी की याद आ गई.
याद आ गई तो उन्हें बुला भी लिया. ग़लती ये हो गई कि ऐसे तमाम स्वनामधन्य महानुभावों को आयोजक भूल गए जो ज़िदगी भर अपने माथे पर हिंदी की बिंदी लगाए घूमते रहे हैं.
उन्होंने हिंदी की आरती उतार कर इस भाषा का कितना भला किया है, या भाषा के विमर्श से खुद उनका भला हुआ है. या फिर साहित्य में योगदान की नज़र में वो 'बच्चन परिवार' से कितने आगे हैं, ये बहस का मुद्दा हो सकता है.
लेकिन फिलहाल बड़े मुद्दे की बात ये है कि उनमें से बहुतों के पेट में दर्द हो गया. और ये दर्द इस कदर संक्रामक था कि मुंबई पहुंचते- पहुंचते ये अमिताभ बच्चन जी के दांत में उतर गया.
मैंने एक फ्ल़ॉप फिल्म 'गंगा जमुना सरस्वती' में अमिताभ बच्चन को विलेन के दांत तोड़ते देखा है. वो भी गिन-गिनकर पूरे बत्तीस.
बात अब समझ आई कि आप दूसरे के दांत भले ही तोड़ सकते हो लेकिन जब मामला अपने दांत का हो तो आप किनारे होकर चुपचाप बैठना ही पसंद करते हैं.
तो अमिताभ के दांत का दर्द उन्हें हिंदी सम्मेलन में शिरकत नहीं करने देगा. चलिए, जिन भाईयों के पेट में दर्द हुआ था, वो शायद अब कुछ कम हो जाए.







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