सोमवार, 28 सितंबर 2015

सीना '56 इंच'

और आंखें समंदर 




सीन 1


भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग के साथ बैठे हैं.

चैट कर रहे हैं.

सवालों की बौछार के बीच एक सवाल माता-पिता के बारे में आता है.

जवाब में मोदी कहते हैं

'हमारे पिताजी तो रहे नहीं अब'

'माताजी है. 90 साल से ज्यादा उमर है. आज भी अपने सारे काम खुद करती हैं'.

तालियां बजती हैं.

मोदी आगे कहते हैं

'पढ़ी लिखी नहीं हैं'.

'जब हम छोटे थे तो हमारा गुजारा करने के लिए वे अड़ोस पड़ोस के घरों में...'

इतना बोलकर मोदी ठहरते हैं. अगला शब्द मुंह से निकलता है तो गला रुंध चुका होता है

'बर्तन साफ करना ...'

मोदी फिर रुकते हैं. दोबारा बोलते हैं तो आवाज पूरी तरह भर्रा चुकी होती है.

'पानी भरना...'

इतना कहने के बाद लगता है कि मोदी को आगे बोलने के लिए खुद से लड़ना पड़ रहा है.

वो आंखों से छलक पड़ने को बेताब आंसुओं से जंग लड़ रहे हैं.

लगता है कि आंखों के आंसू गले में उतर आए हैं और उनकी दमदार आवाज उसमें डूब सी रही है. आवाज किसी तरह हाथ पैर मारते हुए बाहर आने की कोशिश में है.

वो लगभग टूटती कांपती सी आवाज में बात पूरी करने की कोशिश करते हैं

'म..मजदूरी करना'

मोदी रुकते हैं. इस बार जंग जीतने के लिए. डूबती आवाज संभल जाती है. मोदी बात पूरी करते हैं.

'आप कल्पना कर सकते हैं कि एक मां ने अपने बच्चों को बड़ा करने में कितना कष्ट उठाया'.

मोदी के इतना बोलते ही मुझे यश चोपड़ा की फिल्म 'दीवार' का एक 'अमर' सीन याद आ गया. क्यों? पता नहीं.

सीन-2 


विजय का किरदार निभा रहे अमिताभ बच्चन स्मग्लर डाबर का किरदार निभा रहे इफ्तेखार के दफ्तर में खड़े हैं

और ऊंची इमारत की आदमकद खिड़की से झांककर फुटपाथ को देख रहे हैं.

इफ्तेखार पूछते हैं

'क्या देख रहे हो?'

अमिताभ जवाब देते हैं

'देख रहा हूं सामने फुटपाथ पर एक मजबूर औरत दो मासूम बच्चे.'

'भूख से निढाल. बेसहारा.'

अमिताभ घूमते हैं और कहते हैं

'मुझे आपका सौदा मंजूर है डाबर साहब'

दूसरा सीन 1975 का और पहला 2015 का.

सिनेमा का वो दौर बदल चुका है. हिंदुस्तान बदल चुका है. दुनिया बदल चुकी है. तकनीक और तरक्की ने दुनिया को पास लाकर भी रिश्तों को बहुत दूर कर दिया है

लेकिन फिर भी मां की ताकत आज भी उतनी ही है. मां की मजबूरी की याद आज भी आंखों में आंसू ला देती है.

सत्तर के दशक की फिल्मों में फुटपाथ पर मां की मजबूरी के साए में पलना हीरो की खूबी उभारने के लिए जरुरी माना जाता था.

फिल्मी लेखकों ने तब ये नहीं सोचा होगा कि 21 वीं सदी के दूसरे दशक में असल ज़िंदगी में कोई ऐसा हीरो आएगा.

मोदी दुनिया को बता चुके हैं कि उनका सीना 56 इंच का है. यानी वो ऐसे वैसे नहीं बल्कि 'बाहुबली' हीरो हैं. एकदम दबंग.

लेकिन, उन्होंने कभी ये नहीं बताया कि उनकी आंखें समंदर हैं.

और समंदर के आगे छप्पन इंच कहां गुम हो जाते हैं, कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता.

मोदी की ये गहराई उनकी मां की वजह से सामने आई.

ये सीन हिट तो हो ही चुका है. इसे अमर होने से भी कोई नहीं रोक सकता.

हो सकता है, अब से चालीस साल बाद भी आपको कोई ये कहता सुनाई दे,

'मेरे पास मां है'.



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