शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

आपने हंसाया और

हम वोट दे आए... 


इरादा अपनी पीठ ठोकने का नहीं है. 

कतई नहीं. 

ऐसी उम्मीद भी नहीं कि कोई मुझे राजनीति का पंडित, विश्लेषक या फिर जनता की 'नब्ज' का पारखी माने. 

फिर नतीजों को लेकर मैंने कोई गारंटीशुदा बात भी नहीं की थी. 

पहले जो कहा था, आज भी बस वही दोहराऊंगा. 

मैंने कहा था कि बिहारी 'बुड़बक' नहीं है. 

http://raishumari.blogspot.in/2015/10/blog-post.html

और, बिहार विधानसभा के चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे. 

और जीतेगा वही जो सबसे ज्यादा 'एंटरटेन' करेगा 

http://raishumari.blogspot.in/2015/04/blog-post_16.html

मांझी एंटरटेनर थे लेकिन नई पार्टी को कामयाबी दिलाने के दबाव ने उनके मसखरेपन को गुम कर दिया. 

नरेंद्र मोदी ने कोशिश की लेकिन लोकसभा जैसा माहौल नहीं जमा पाए. 

वो ज्यादातर वक्त एंग्री सुपरमैन के रोल में रहे. चीखते, चिल्लाले, कोसते या शिकायत करते दिखे. 

लंदन में मोदी का जो अंदाज दिखा, उसकी झलक भर बिहार में दिखा दी होती तो वोटर इस कदर नहीं रूठते. 

बीजेपी के बाकी नेता शायद 'हंसने-हंसाने' में यकीन ही नहीं करते. 

खास किस्म के अनुशासन ने शायद उनका 'सेंस ऑफ ह्यूमर' विकसित ही नहीं होने दिया. 

या फिर वो शायद ये मानते हों कि हंसे तो 'राष्ट्रवादी' बुरा न मान जाएं. उन्हें 'नॉन सीरियस' न समझा जाए.

एंटरटेनमेंट में बाजी मारी लालू प्रसाद यादव ने. 

अमित शाह लिफ्ट में फंसे तो उनके पेट का नाप लेने लगे. 

प्रधानमंत्री के समर्थक रैलियों में जिस तरह उन्हें चीयर करते हैं, उसकी बार-बार नकल की. 

मोदी ने बिहार के लिए स्पेशल पैकेज का ऐलान किया तो उसकी मिमिक्री करने लगे. 

और तो और, एक रैली में मंच पर पंखा गिर गया तो भी हंसने-हंसाने से नहीं चूके.

मुश्किल सवालों का जवाब भी हंसते-हंसते दिया. 

मुलायम सिंह यादव महागठबंधन से अलग हुए. 

पूछा गया कि समधी छोड़ गए तो लालू ने कहा, 'मेरे दो साले भी मुझे छोड़ चुके हैं'

जवाब सुनते ही ठहाके गूंज पड़े  

लंबे वक्त के बाद चुनावी मौसम में लालू हंसे भी खूब- हंसाया भी खूब. 

लालू के आसपास कोई आ ही नहीं पाया. तो वोटरों ने हंसते-हंसते उन्हें सबसे ज्यादा सीटें थमा दीं. 

हर वक्त सीरियस रहने वाले नीतीश कुमार भी वोटरों को एंटरटेन करने में पीछे नहीं रहे. 

क्या आपको याद है, पहले कभी नीतीश ने पेरोड़ी की थी, वो भी थ्री ईडियट स्टाइल?

और, जो लोग इन नतीजों को यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत यानी जातिगत वोटिंग के खांचे में देख रहे हैं, उनसे विनम्रता के साथ मैं कहना चाहता हूं कि सर जी आपसे मैं इत्तेफाक नहीं रखता. 

जातिगत समीकरण देखकर टिकट सिर्फ महागठबंधन ने नहीं दी थी. 

भारतीय जनता पार्टी के आधुनिक 'चाणक्य' अमित शाह ने भी दी थी. 

जाति का यही फॉर्मूला लोकसभा चुनाव में भी आजमाया गया था. तब भी वोटरों ने जाति और जुमलों से अलग अपनी पसंद की लाइन ली थी. 

अब भी यही किया है. वो आगे भी यही करेंगे. 

बिहार के वोटर खुशनुमा माहौल पसंद करते हैं. चीखते- चिल्लाते, रोते- धोते, शिकायत करते नेता उन्हें रास नहीं आते. 

अगली बार बिहार के समर में उतरें तो याद रखिएगा, वोटरों को एंटरटेन करेंगे तो जीत गारंटी के साथ मिलेगी. 

जाति के गणित पे बिहार के चुनाव में जुआ खेलना चाहेंगे तो वोटर धम्म से जमीन पर पटक देंगे. 

'पक्के' वोट बैंक के बाद भी लालू जी ने दस साल पटक ही खाई थी. 

और, जिस 'जाति' को चुनाव में उन्होंने दरकिनार किया, उससे उनके जुड़ाव के कुछ अनसुनी कहानियां स्टोर में हैं. आप कहेंगे तो किसी दिन वो भी बयान कर दी जाएंगी. 

4 टिप्‍पणियां:

  1. रामचंद्र कह गए सीया से ऐसा कलयूग आएगा,हंस चुगेगा दाना तिनका कौआ मोती खायेगा।।

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  2. रामचंद्र कह गए सीया से ऐसा कलयूग आएगा,हंस चुगेगा दाना तिनका कौआ मोती खायेगा।।

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