गुरुवार, 31 मार्च 2016

गेल से अमिताभ बच्चन की डील!

पार्टी तो बनती है!!!



अब आप मिस्टर बच्चन को क्या कहेंगे? 

कम से कम खबरों में बने रहने के लिए उन्हें क्रिकेट की जरुरत नहीं. 

खबरें तो उनके पीछे दौड़ती हैं. वो 73 बरस के हैं. 

उम्र को मात देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नौ साल पहले पैदा हुए हैं. लेकिन जोश 37 बरस के तमाम आंके-बांकों से कई गुना ज्यादा है. 



 एक दिन वो कोलकाता में होते हैं. अगले दिन दुबई में फिर तीन दिन के अंदर कतर में दिखाई देते हैं.

और हर जगह तमाम सितारों और सुपर सितारों के बीच कद्रदानों की निगाहें सिर्फ उन पर टिकी होती हैं.

तभी जानकारी मिलती है कि नेशनल अवॉर्ड चुनने वाली जूरी ने पैनल के सारे नाम दरकिनार करते हुए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता चुना है.

हर तरफ से बधाइयों का तांता शुरु हो जाता है. फैन्स. बॉलीवुड. यहां तक कि पुरस्कार पाने वाले दूसरे कलाकार भी कहते हैं कि उन्हें फख्र इस बात है कि वो राष्ट्रीय पुरस्कार के काबिल उस वक्त समझे गए जबकि श्रीमान अमिताभ बच्चन को भी पुरस्कार मिल रहा है.


सोशल मीडिया पर लोकप्रियता का आलम देखिए. ट्विटर पर उन्हें फॉलो करने वालों की संख्या 20 मिलियन के पार निकल चुकी है. आप तो जानते हैं कि एक मिलियन का मतलब दस लाख होता है. यानी दो करोड़ लोग ट्विटर पर उनके पीछे हैं. 

एक बार फिर मुझे कहना पड़ रहा है कि ट्विटर के किंग माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनसे पीछे हैं. प्रधानमंत्री को 19 मिलियन लोग फॉलो करते हैं. 

और, क्रिकेट  के नए फरिश्ते विराट कोहली को फॉलो करने वालों की संख्या बच्चन के फॉलोअर्स से आधी है. 

अब ये भी साफ हो चुका है कि सीनियर बच्चन साहब कमाई के लिए क्रिकेट की बातें नहीं करते. 

बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने रिकॉर्ड पर कहा है कि मिस्टर बच्चन ने भारत-पाकिस्तान के बीच कोलकाता के ईडेन गार्डन्स मैदान पर हुए मैच के पहले राष्ट्रगान गाने के लिए कोई रकम नहीं ली थी. 

उन्होंने न सिर्फ कोलकाता आने जाने के लिए चार्टेड प्लेन का किराया खुद दिया था बल्कि मैच का टिकट भी लिया था. 

मेरे ख्याल से करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिलों पर राज करने वाले सीनियर बच्चन जानते हैं कि ये सारे दिल क्रिकेट के लिए भी दीवाने हैं. 

दिलों का ये मेल ही उन्हें इस खेल की तरफ खींचता होगा. 

दूसरी वजह ये भी है कि वो लोगों की पसंद और ट्रेंड को भांपने के उस्ताद हैं. पीढ़ियां बदलने के बाद भी उनका जादू बरकरार होने की एक वजह ये भी है. 

वो सही वक्त पर सही जगह मौजूद होने की अहमियत जानते हैं. यही बात उन्हें हर वक्त सबसे अहम बनाए रखती है. 

सीनियर बच्चन साहब बांग्लादेश पर भारत की रोमांचक जीत के बाद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की तारीफ करते हैं तो मोहाली में ऑस्ट्रेलिया की धुलाई करने के लिए कोहली के करिश्मे को दाद देते हैं. 

और जिस वक्त भारतीय ड्रेसिंग रुम में क्रिस गेल को सेमीफाइनल में रोकने की रणनीति पर होने वाली चर्चा को लेकर हर नुक्कड, हर चौपाल, हर बैठकखाने और हर ड्राइंग रुम में डिबेट जारी है ट्विटर पर गेल की मेजबानी करते श्रीमान बच्चन की तस्वीर सामने आती है. 

जी हां, जिस गेल को लेकर हिंदुस्तान की नींद में खलल पड़ा हुआ है, जो मौजूदा वर्ल्ड ट्वेंटी-20 के इकलौते शतकवीर हैं, जो भारतीय टीम और वर्ल्ड ट्वेंटी-20 ट्रॉफी के बीच की सबसे बड़ी दीवार माने जा रहे हैं, वो अपने बच्चन साहब के फैन हैं. 

और बच्चन साहब को भरोसा है कि गुरुवार को यानी आज होने वाले मैच में वो भारतीय टीम पर मेहरबान होंगे. 

फिर पार्टी तो बनती है. 

(साभार: सभी तस्वीरें श्रीमान अमिताभ बच्चन के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट @SrBachchan से ली गई हैं. इसका मकसद व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं है. :  ) 

बुधवार, 23 मार्च 2016

कृष्ण खेलें होली

और तरसें हम गोरे-काले...

 चेहरे पर रंग चढ़ा हो फिर क्या पता, कौन गोरा है और कौन काला.

सबको समान बना देने वाला होली जैसा कोई उत्सव दुनिया के किसी हिस्से में होता हो तो बता दें.

और अगर आप ब्रज की गलियों में पहुंच जाएं तो बरसाना से लेकर नंदगांव और मथुरा- वृंदावन तक में गुलाल के गुबार के बीच लाठियां लेकर पुरुषों को दौड़ाती महिलाओं के दर्शन न हों, ये मुमकिन नहीं.

ये दृश्य अब से नहीं पांच हज़ार साल पहले से दिखते हैं. महिला अधिकारों और नारी स्वतंत्रता को लेकर शुरू हुई बहसों से हज़ारों साल पहले से.

यही कृष्ण का दर्शन है और यही उनकी कृपा.

अन्याय और असमानता का रोना रोने से समानता आ सकती है या नहीं, ये बहस का मुद्दा है.
कृष्ण कभी ऐसी बहस में नहीं पड़े.

उन्होंने उत्सवीय परंपराओं को ऐसे मोड़ दे दिए कि हंसते- खेलते, आनंद मनाते ऊंच-नींच के भेद मिटते चले गए.

कृष्ण की पिचकारी से प्रेम रंग निकला. राधा भींगी और नाराज़ होकर कान्हा की तरफ लाठी लेकर दौड़ीं. ये लाठी अधिकार की थी. 

इसने ब्रज की महिलाओं के हाथ को इतना शक्ति संपन्न बना दिया जिसका बल पांच सहस्त्राब्दियों के बाद भी कम नहीं हुआ है. 

फागुन के महीने में लाठियों की ये बारिश देखने देश दुनिया से अनगिनत लोग ब्रज की गलियों में जुटते हैं. वो कृष्ण युग की परंपराओं से क्या सीखते हैं पता नहीं लेकिन वो उतने पल के लिए कृष्ण या राधा बन जाते हैं जितनी देर ब्रज की धूल में मिला रंग-गुलाल उनके चेहरे पर चिपका रहता है. 

कृष्ण का महारास हो या फिर होली का उल्लास. हर तरफ कृष्ण थे क्योंकि वहां मौजूद हर कोई कृष्ण हो गया. 
लेकिन कृष्ण बने रहना आसान नहीं. कृष्ण होकर आप शिकायत नहीं कर सकते. आनंद, उल्लास और प्रेम में रो तो सकते हैं लेकिन अवसाद के सागर में डूबे नहीं रह सकते. 
जिन्हें झीकते रहने की आदत है, वो क्षणिक आनंद के बाद अपने गोरे- काले चेहरे लिए कृष्ण लोक से बाहर आ जाते हैं. 

और जो कृष्ण बने रहते हैं, उनके लिए हर दिन होली का उत्सव है और हर तरफ आनंद है. जहां कृष्ण है वहां उमंग, उल्लास और उत्साह के रंगों की बरसात के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता. 

यकीन न हो तो इस होली कृष्ण होकर देखिए.